गौरैया और बचपन - २० मार्च २०२४ का टास्क
नमस्कार बहनों, सखियों 🙏
मैं संध्या शर्मा
आप सभी ने अपने शब्दों और भावों के रूप में जो उपहार दिया उसके लिए ख़ूब सारा प्यार और शुक्रिया आप सभी का। इतने सुंदर टास्क को सहेजना बहुत ज़रूरी था। इसलिए इसे ब्लॉग पर सहेज रही हूं।
प्रस्तुत है आज का टास्क
बुधवार - बचपन में धूम और मस्ती तो सभी ने को होगी। तो एक किस्सा अपनी शरारत का और ऐसे गीत जिन्हें हम जब बहुत खुश होते हैं तब सुनना पसंद करते हैं।
आज गौरैया दिवस भी है तो बुलाइए अपने शब्दों और भावों की आवाज़ देकर प्यारी सी चिड़िया को भी 🙏
लीजिए प्रस्तुत है इस टास्क पर लिखी गई सुंदर सुंदर भावपूर्ण रचनाएं
परिन्दों !!!! नीलम मिश्रा
कहां से लाते हो यह हौसला और यह उड़ान
न बारिश रोक पाती है तुम्हे न ही तुम उनको
अलबत्ता एक अद्भुत सामंजस्य देख पाती हूँ
तुम बारिश के रुकने तक पेडों के कोटरों में
और बारिश के थमने पर उन्मुक्त आकाश में!!!
तुमको कोई ट्रैफिक और जाम की फिक्र नहीं
लम्बी दूरी और रास्तों के लिये तुम थोडे
नजदीक के पड़ाव जो चुन लेती हो
तुम चाहती हो अनन्त आकाश बचा रहे
तुम्हारी उडाने बची रहें
मेरी यह फिक्र कि धरती बची रहे
तुम्हारे आशियाने बचे रहें !!!!
नीलम मिश्रा
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बना रही है घर गौरैया। गिरिजा कुलश्रेष्ठ
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जब चाहे तब उड़ती थी .
आँगन-गली फुदकती थी।
जहाँ मिला कर लिया बसेरा,
चिन्ता उसे न रहती थी .
यही कि है बेघर गौरैया .
बना रही है घर गौरैया .
तिनका-तिनका चुनने को .
नया घोंसला बुनने को .
नये घोंसले में नन्हों की,
चीं--चीं...चूँ-चूँ सुनने को .
कितनी है आतुर गौरैया .
बना रही है घर गौरैया .
टुमक-टुमक--टुम चलती है .
पकड़ चोंच में घिसती है .
पटके , तोड़े तिनकों को ,
यों हर तरह परखती है .
कितनी कुशल सजग गौरैया .
बना रही है घर गौरैया .
गिलहरियों ने उसको छेड़ा .
कौआ-बिल्ली करें बखेड़ा .
जब भी जहाँ जमाए तिनके ,
अम्मा ने हर बार खदेड़ा ।
फिर भी है तत्पर गौरैया ,
बना रही है घर गौरैया ।
अम्मा ,यह उसका भी घर है .
नन्ही चिड़िया है, क्या डर है .
उसको नीड़ बनाने दो ,
सपने नए सजाने दो .
चूँ चूँ चक् चक् होगी मैया .
खुशियाँ लाएगी गौरैया .
ओ गौरैया - जगह दे दो मुझे अपने आंगन में
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ओ गौरैया-संध्या शर्मा
ओ गौरैया!
नन्ही सी तुम
कितनी खुश थी
अपनी मर्जी से
चहचहाती थी
जब जी चाहे
सामर्थ्य भर
भरती थी उड़ान
छू लेती थी आसमान
चहचहाती थी
जहां जी चाहे
उन्मुक्त होकर
फुदकती रहती थी
किसने लगा दी
रोक-टोक तुम पर
क्या मेरी तरह
लग गए है तुमको
रीति - रिवाजों
परंपराओं के बंधन
क्यों लुप्त हो गई तुम
कहो ना कुछ कहो तो
क्या खोज ली है तुमने
कोई और दुनिया?
तो बुला लो मुझे भी
वहीं जहां तुम हो....!
जगह दे दो मुझे
अपने आंगन में ....
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युद्ध की विभीषिका - साधना वैद
प्यारी चिड़िया
आकुल मन से देख रही हूँ तुम्हें
बेहद काले गाढ़े धुँए के गुबार से
बाहर निकलते हुए
हैरान, परेशान,
आकुल व्याकुल, रोते, चीखते,
कलपते, विलाप करते हुए !
आग में झुलसे जले
धराशायी पेड़ की पत्रहीन शाखों पर
ढूँढ रही हो न तुम
अपना आशियाना ?
ओ प्यारी चिड़िया
तुम्हारे नन्हे नन्हे चूज़े,
तुम्हारे संगी साथी सब
इस निर्मम मानव की उद्देश्यहीन
महत्वाकांक्षा की बलि चढ़ गए !
बड़े परिश्रम से बनाया गया
तुम्हारा आशियाना
आग की लपटों में झुलस कर
पल भर में राख हो गया !
प्यारी चिड़िया
कौन उत्तरदायी है
तुम्हारी सूनी आँखों में उमड़े
इन अनुत्तरित सवालों का ?
किसने हक़ दिया
इस हृदयहीन मानव को
इतने पंछियों की ह्त्या का ?
इतने सुन्दर प्रदेशों को
इस तरह से नष्ट करने का ?
इतने सुरम्य स्थानों के
पर्यावरण को यूँ प्रदूषित करने का ?
लम्हों की इस खता की सज़ा
कौन जाने आने वाली कितनी पीढ़ियाँ
कितनी सदियों तक भोगती रहेंगी !
ओ प्यारी चिड़िया
काश मेरे अनवरत बहते आँसू
तुम्हारे मन मस्तिष्क पर छाये
इस गहरे काले धुएँ की कालिमा को
कुछ तो कम कर पाते !
काश तुम्हारी दृष्टि
कुछ तो साफ़ हो जाती
ताकि तुम युद्ध की विभीषिका से ग्रस्त
इस प्रदेश में अपने रहने के लिए
कोई निरापद स्थान ढूँढ पातीं,
तुम्हारे कंठ से
करूण क्रंदन के स्थान पर
प्रेरणादायी मधुर गीत फूटते
और जाने कितने वेदना विदग्ध
हृदयों को कुछ आश्वासन
कुछ शान्ति तो मिल जाती !
साधना वैद
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चिड़िया पर कविता नहीं रोजमर्रा का हाल बताती हूं - शोभना चौरे
मेरे बालकनी के बाहर ac के ऊपर रोज सुबह से 2 चिड़िया आती है मैं रोटी के छोटे छोटे टुकड़े करके डालती हूं थोड़ी ही देर में दोनों खा लेती बाकी चोंच में दबाकर ले जाती।और अगर ज्वार की रोटी डाली तो नहीं खाती ,सिर्फ पके सफेद चांवल खाती अगर खिचड़ी रखो तो नहीं खाती ब्रेड बिस्किट नहीं खाती।तस्वीर ले ही नहीं पाते।जब मैं गांव में थी तो कितना ही खुला पानी रहता नहीं पीती और नल का टपकता पानी बंद बूंद टेढ़ी होकर पीती।
ऐसी होती है चतुर चिड़िया- शोभना चौरे
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गौरैया और सेवन सिस्टर्स - मधु बत्रा
लोग कहते हैं कि गौरैया कम दिखती हैं पर मेरे गार्डन में खूब आती हैं... चिड़ा और चिड़िया दोनों...खासतौर पर जब गार्डन में पानी दे रही होती हूँ...ढेर सारी गौरैया पेड़, पौधों पर फुदकती चहचहाती हैँ, पानी की धारा के छींटों से भीगती हैं..सच में मन प्रफुल्लित हो उठता है...पेड़ पर बंधे पानी के पात्र में पानी पीकर, उनका पानी में अठखेलियाँ करना देख कर हृदय तरंगित हो उठता है....गौरैया के अलावा और भी बहुत से पक्षी आते हैं..एक सेवन सिस्टर्स नाम से जानी जाने वाली चिडियों का दल भी आता है..ये हमेशा सात के समूह में चलती हैं..😊😊
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मेरी गौरैया - पूजा अनिल
सुबह सवेरे गाए गौरैया,
घर मुंडेर जब आए गौरैया,
गोल आँख और रंगत भूरी
मेरे मन को भाए गौरैया।
चींचीं चींचीं दिन भर बोले
फुदक फुदक पेड़ों पर डोले
दाना चुगती आँगन आँगन,
अपनी छोटी चोंच को खोले।
बहुत ऊँचा यह उड़ नहीं पाती,
मानव बस्ती इसको भाती,
रोटी, चावल, दाल का दाना,
जो भी खिलाओ, शौक से खाती।
झुण्ड में रहना आदत इसकी,
ज़रा हो आहट, फुर्र से खिसकी,
बुरे भले का ज्ञान समझती,
दादी मेरी कहे इसे झिरकी।
मेरी गौरैया, प्यारी गौरैया!
मेरे आँगन नीम की छैंया!,
यहीं आकर तुम सुस्ताओगी,
कहते बाबा, दीदी, भैया!
- पूजा अनिल
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यही आस है मेरी - रश्मि प्रभा
खोलो खोलो
आंखें खोलो
पानी लेकर बाहर आओ
मैं तेरे आंगन की गौरैया की पोती हूं ।
दादी ने सुनाई थी
इस आंगन की लंबी कहानी
कैसे टूटा,
कैसे छूटा
सब बताया था मुझको ।
एक दिन तुमसे मिलने आऊं
बड़ी चाह थी मेरी,
तेरे घर का पानी पी लूं
यही आस है मेरी ।
पानी पीकर दुआ करुंगी
लौट आए वो आंगन फिर से
तेरे बच्चे,
मेरे बच्चे
खेलें वही इक खेल
जो हमारी दादी
तुम्हारी दादी
खेला करती थी जी भरके ...
रश्मि प्रभा
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बचपन की मासूम सी शरारतों को याद किया है साधना वैद जी ने। तो पढ़िए इन्हे और याद कीजिए अपने अपने बचपन को
बचपन की शरारतें - साधना वैद
वो बचपन ही क्या जिसमें शरारतें न की गयी हों और अपने नन्हे नन्हे गालों पर दो चार चपत न खाई हों ! मेरा सारा बचपन मध्य प्रदेश में बीता ! मध्य प्रदेश में दशहरे का त्योहार बड़े जोर शोर से मनाया जाता है ! उत्तर प्रदेश में जैसे होली पर सभी एक दूसरे के यहाँ शुभकामना देने और मिलने जाते हैं वैसे ही वहाँ सभी मित्र पड़ोसी दशहरे पर सोना देने और मिलने के लिए आते हैं ! शमी वृक्ष के पत्तों को सोना कहा जाता है उधर ! रावण दहन के बाद सब शमी वृक्ष के पत्तों को तोड़ कर एक दूसरे को देते हैं सोने की लंका से सोना लूटने के प्रतीक स्वरुप ! मेहमानों के स्वागत के लिए मम्मी बाबूजी बहुत अच्छी तरह से व्यवस्था करते थे ! खाचरौद की बात है ! उन दिनों सिगरेट का बहुत चलन था ! हमारे यहाँ तो कभी कोई सिगरेट नहीं पीता था लेकिन मेहमानों के लिए बाबूजी दशहरे पर सिगरेट के एक दो पैकेट मँगवा कर रखते थे ! एक बड़ी सुन्दर सी ट्रे थी जिसमें मीनाकारी वाला चौकोर डिब्बा था जिसमें सिगरेट रखी जाती थीं एक क्लिप के शेप में मीनाकारी का बड़ा ही सुन्दर दियासलाई रखने का केस था और एक एश ट्रे थी ! हमारे यहाँ उन दिनों देहरादून से हमारे चाचाजी के बेटे भी आये हुए थे ! मेरी उम्र होगी चार पाँच साल की, मेरे बड़े भाई की उम्र होगी छ: सात साल की और मेरे चचेरे भाई मुझसे बड़े और दादा से छोटे थे ! दिन का समय था ! बाबूजी कोर्ट गए थे ! मम्मी दिन में सो रही थीं ! मेरे दोनों भाइयों को सिगरेट पीने की हुड़क उठी ! मेहमानों को पीते देखते थे कि सिगरेट का आगे का सिरा तेज़ी से जल रहा है और फिर मुँह से और नाक से कैसे धुआँ निकलता है तो इन्हें भी शौक चर्राया ! मम्मी कहीं जाग न जाएँ तो टॉफी का लालच देकर हमसे सिगरेट मँगवाई जा रही थी और दोनों भाई फू फू करके सिगरेट पी रहे थे ! हमसे इसलिये मँगवा रहे थे कि मम्मी को हम पर तो शक होगा ही नहीं ! हम सबसे छोटे भी थे तो मार भी नहीं पड़ेगी ! हमारे बार बार ऊपर नीचे उतरने चढ़ने से मम्मी की आँख तो खुल गयी थी लेकिन उन्हें कुछ पता नहीं चला ! तीसरी बार जब हम ऊपर गए और हमने चुपके से सिगरेट का डिब्बा खोला तो मम्मी को शक हो गया ! वो चुपचाप हमारे पीछे पीछे नीचे आईं और जब उन्होंने दोनों भाइयों को सिगरेट पीते देखा तो दोनों को दो दो चाँटे कस कर पड़े ! हमारी रुआँसी शक्ल देख कर मम्मी को हम पर दया आ गयी ! हमें भी इस खुराफात का मोहरा बनाया इसके लिए दोनों को एक एक चाँटा और पड़ा और हमारे कान पकडे गए सिर्फ ! यह हमारी पहली शरारत थी जिसकी हमें याद है अभी तक !
साधना वैद
😀😀😀
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