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Showing posts from April, 2022

आपके राज्य में क्या खास है?

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हम सभी कभी किसी पर्यटन स्थल पर जाने की योजना बनाते हैं तो सोचते हैं कि वहा़ क्या खास है जो देखा जाए| यूँ तो हर जानकारी गूगल पर उपलब्ध है पर यदि वहाँ के निवासी किसी स्थल पर मुहर लगा दें तो वह जगह निश्चित रूप से दर्शनीय है| हम लेकर आए हैं वही खास स्थान| १. पटना- गोलघर - रश्मिप्रभा बचपन में जब पटना जाते थे, तब यह गोलघर बहुत विशिष्ट लगता था, दूर से इसे देखते हुए _ कहानियों, इसकी बनावट और उँची घुमावदार सीढ़ियों के पन्ने सामने होते थे । चढ़कर तो खुद में खास सा लगा था ।  वक्त बदला, अब यह गोलघर मुश्किल से नजर आता है, देखकर तरस आता है, फिर भी यह अपना इतिहास लिए आज भी खड़ा है, कभी पन्ने पलटिए,  नई पीढ़ी के आगे रखिए,  आपके राज्य में हो न हो, पर है यह खास । रश्मि प्रभा २. इंदौर राजबाड़ा - अर्चना चावजी अहिल्याबाई होलकर ने यहां राज किया था, आज भी वही पुरानी शान बान लिए शहर के मध्य में खड़ा है,आसपास बाजार है,घनी बस्ती बसी है,एक तरफ सराफा बाजार जहां दिन भर सोने,चांदी की दुकानें खुली रहती है तो रात में खाने पीने की, और दूसरी तरफ खजूरी बाजार जहां पुस्तको की दुकानें हैं, पुरानी पुस्तके लगभग आधे दाम में म

चित्र एक-भाव अनेक

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  यह चित्र चित्रकला में सिद्धहस्त कलाकार आदरणीया उषा किरण दी का है| उषा दी की प्रकाशित पुस्तक 'ताना बाना' से मैंने टास्क के लिए आभार के साथ लिया है| सभी को इस चित्र पर कविता लिखनी है और गीत भी गाने हैं| प्रस्तुत हैं उन सबकी प्रस्तुतियाँ १. वंदना अवस्थी दूबे जी पिता जी की कविता ससम्मान दी जा रही , नमन उन्हें !! समर्पण जीवन के स्वयं समर्पण को मैं जीत कहूं या हार कहूं? मैने देखी प्राचीर रश्मि, देखा संध्या का अंधकार, पूनो की रजत-ज्योत्सना में, लख सका अमा का तम अपार, इन काली-उजली घड़ियों को, मैं दिवस या कि अवसान कहूं? जीवन के स्वयं समर्पण को मैं जीत कहूं या हार कहूं? जीवन की कश्ती छोड़ चुका, सरि की उत्ताल तरंगों में, बढ़ चली किन्तु पथभ्रष्टा सी, मारुति के मत्त झकोरों में, लहरों-झोंकों से निर्मित पथ की, कूल या कि मझधार कहूं? जीवन के स्वयं समर्पण को मैं जीत कहूं या हार कहूं? अपना सबकुछ खो देने पर अपनी सर्वस्व प्राप्ति देखी, सर्वस्व हार जाने पर भी, अपनी सम्पूर्ण विजय देखी, तब, इस सम्पूर्ण समर्पण को, वंचना कहूं या लब्धि कहूं? जीवन के स्वयं समर्पण को मैं जीत कहूं या हार कहूं? ०रामरतन अवस्थी

इत्ती सी हँसी,इत्ती सी खुशी , इत्ता सा टुकड़ा चाँद का

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3अप्रैल को ग्रुप "गाओ गुनगुनाओ शौक से" की वर्षगांठ थी। सुबह से मन था कि कुछ अलग करें ,और ये खास तरह की सेल्फी ली गई। इस भगमभाग भरी दुनिया में एक पल ठहरकर हँसने हँसाने के लिए, आईए आप भी दो पल रुके , हँसे हमारे साथ  (इस खास तरह की सेल्फी के लिए थोड़ा मुंह खोलें और मुस्कान को बढ़ाते हुए होठों के किनारों को ज्यादा से ज्यादा कान के पास ले जाने की कोशिश करें ।आँखें इस प्रयास में बंद हों तो भी चलेंगी 😂)। इस तरह पहली सेल्फी लेकर ग्रुप पर भेजी और कहा इस तरह की फोटो चाहिए और देखिए एक दूसरे के लिए जान निछावर करने वाली सखियों ने क्या किया । नोट - जो लोग बाकि बचे उनके फोटो मिलने पर पोस्ट कर दिए जाएंगे। अर्चना चावजी रश्मिप्रभ दी की दो फोटो रिजेक्ट की गई,फिर ये निकली। आराधना और मीठी किट्टी व्यस्त थी शायद फिर भी  मीठी के साथ रविवार मन गया हमारा। रचना बजाज रचना परसों ही राजकोट शिफ्ट हुई ast व्यस्त पड़े सामान के बीच ये पल निकाल ही लिया। गिरिजा कुलश्रेष्ठ गिरिजा जी ने तुरंत पहले शॉट में पकड़ ली मुस्कान। रश्मि कुच्चल रश्मि