एक गिलास ठंडा पानी
भीषण, झुलसा देने वाली गर्मी पड़ रही है। जरा गाड़ी से निकल शॉप तक जाने में गला सूखता है, बदन जलने लगता है । गॉगल्स , छतरी से भी राहत नहीं मिलती। बाहर से आते ही हाथ मुँह पर ठंडे पानी के छपके मारती हूँ ।जबकि हमारे ऑनलाइन शॉपिंग के सेवक, डिलीवरी बॉय , सब्जी वाले, पोस्टमैन, सिलिंडर वाले व रिक्शे वाले भैया,बिजली का मीटर चैक करने वाले ….सारी दोपहरी पसीना- पसीना, मुँह लाल कर इधर से उधर भागते हैं जबकि हम एयर कंडीशंड रूम से निकल द्वार तक जाकर अपना सामान लाने तक में झुलस जाते हैं। कल मैंने जब बिजली का मीटर चैक करने आए बन्दे को दोपहर दो बजे ठंडा पानी लाकर दिया तो कृतज्ञता से देखकर चुपचाप पी लिया और जाते- जाते बहुत भावुक होकर कहा कि चालीस साल से ये काम कर रहा हूँ सिर्फ़ यही घर है जहाँ पर मुझे चाय, पानी इज़्ज़त से पूछी जाती है। वर्ना कई जगह तो बेइज्जती तक कर देते हैं कि ये क्या टाइम है ? मेरा मन भारी हो गया, देर तक सोचती रही और जैन शिकंजी की दस- दस रुपये वाली कुछ बोतलें लाकर फ्रिज में लगा दी हैं । दो बार कोरियर वाले आए उनको पैकिट लेकर जब बोतल पकड़ाई, तो चौंककर मेरा मुँह देख, मुस्कुराकर थैंक्यू बोला। आप भी करके देखिए मन को इतनी ठंडक मिलेगी जितनी ठंडाई पीने से भी नहीं मिलती। छत , मुंडेरों पर और पेड़ के नीचे भी पक्षियों के लिए पानी रखिए। नेक काम करके कहना नहीं चाहिए मैं यह जानती हूँ लेकिन अम्माँ की कही बात मानती हूँ । वो कहती थीं कि अच्छा , परोपकार का कुछ करने के बाद बिना घमंड किए अन्य लोगों को जरूर बताना चाहिए, हो सकता है कोई दूसरा प्रेरणा पा जाए और इस तरह एक अच्छी बात, परोपकार की भावना का विस्तार हो जाए।
तो सोच क्या रहे हैं ? आज ही शाम को कुछ ठंडी बोतलें लाकर फ्रिज में लगा दीजिए। नहीं तो एक गिलास ठंडा पानी भी बहुत अच्छा है। और हो सके तो उन लोगों को बच्चों के हाथ से दिलवाइए….तो आपका क्या विचार है ?
—उषा किरण
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