फुनगियों पर डेरा ,किताब एक साझा प्रयास

 ऋता शेखर - 

 फुनगियों पर डेरा - अनुक्रम देखें, हमारी विदुषी सखियों ने सार्थक विषयों पर अपनी रचनाओं से पुस्तक को समृद्ध किया है।

यह पोस्ट प्रकाशक के नाम Shwetwarna प्रकाशन

उच्च क्वालिटी पुस्तक के लिए
हम सभी दिल से आभार प्रकट करते हैं 🌻

सुन्दर सजावट के लिए 🌻
सुन्दर बनावट के लिए 🌻
समुचित फॉन्ट के लिए 🌻
धैर्य से हमारे सुझावों के अनुसार कार्य करने के लिए 🌻

पुस्तक लगभग सभी के पास पहुँच चुकी है।
प्रकाशन खूब तरक्की करे, हम सभी बहनों  की ओर से शुभकामनाएं !! 🌺🌺

शोभना चौरे - 

" फुनगियों पर डेरा"
यहां अध्यात्म है,कला है,योग है,फिल्म है ,पाक शाला है, रेकी है  लोक संगीत है और साहित्य की सारी विधाएं तो है ही।
यह डेरा यूंही चहकता रहे।
अर्चना चावजी ,रश्मि प्रभा जी,पूजानिल
रीता ऋता शेखर 'मधु'   वंदना अवस्थी दुबे का अंतर्मन से धन्यवाद जिन्होंने इस वॉट्स अप ग्रुप के 7 सालों की अभिव्यक्ति को एक पुस्तक के रूप में संजोया अपनी कार्यकुशलता और लगन से उन्हें
"अनेक धन्यवाद♥️
समूह की सभी सदस्याओं  को जो अपने अपने क्षेत्र की  सम्मानीय महिलाएं है अनंत बधाई और शुभकामनाएं।♥️❤️से।


संध्या शर्मा - 

डेरा फुनगियों पर है, लेकिन ये फुनगियां एक ही वृक्ष  "गाएं गुनगुनाएं शौक से" की मज़बूत डाल की हैं। इस डेरे की सारी गुणी चिड़ियों ने एक साथ हंसते, गाते, मुस्कुराते, ठहाके लगाते कितना कुछ रचा है, इसे इस पुस्तक को पढ़कर ही जाना जा सकता है। फुनगियों को थामकर ख़ूब कुलाचें मारी गई हैं, उड़ान भी भरी हैं, लेकिन वृक्ष की डाली को मजबूती से थाम भी रखा है। कला और साहित्य के साथ इसमें स्वाद भी भरपूर है। मस्तियां हैं, सुख है तो दुःख भी है। यूं कहें कि जीवन के हर रस से सराबोर है ये पुस्तक।
हम हरेक प्रतिभागियों के लिए भी आश्चर्य का खज़ाना है। एक एक गतिविधि को कितने करीने से सहेजा गया है, पढ़कर देखिएगा। 
अर्चना दी, रश्मिप्रभा दी, ऋता दी,  पूजा और आराधना आप सभी का इस अनमोल कृति के लिए शुक्रिया, आभार और प्रत्येक सहभागी सखियों का अभिनंदन, बधाई ...


रचना दीक्षित - 

ब्लॉग के समय की सखियों के व्हाट्सएप समूह की गतिविधियों को सहेजती फुनगियों पर मचलती हम सबकी भावनाओं ने अब फुनगियो पर अपना डेरा डाला है।
आ गई है हमारी पुस्तक और प्रति
आभार रश्मि प्रभा दी
पूजा अनिल जी 
और अर्चना चावजी
😊😍🥰😄


साधना वैद

'फुनगियों पर डेरा'
'फुनगियों पर डेरा' इतनी खूबसूरत निखर कर आई है और इसके अन्दर जो रचनाएं हैं वो इतनी बढ़िया हैं कि सच में यह पुस्तक अनमोल हो गयी है| इन दिनों यह पुस्तक फेसबुक पर बहुत चर्चा में है| और क्यों न हो, यह है ही इतनी अनोखी पुस्तक कि इसके बारे में जितना भी कहा जाये कम ही पड़ेगा| कविता, कहानी, चित्राभिव्यक्ति, दर्शन, आध्यात्म, मनोरंजन, स्वास्थ्य, रसोई, योग, रेकी क्या नहीं है इसमें| जो पढ़ेगा इसे चमत्कृत हो जाएगा| 
3 अप्रेल 1917 को अर्चना चाव जी एवं वन्दना अवस्थी दुबे जी द्वारा शौकिया स्थापित किये गए एक व्हाट्स एप ग्रुप ‘गायें, गुनगुनाएं शौक से’ के सभी सदस्यों की रचनाधर्मिता का यह सम्मिलित प्रयास है| बहुत गर्व है हमें कि हम भी इस अनूठे समूह का एक हिस्सा हैं| 
‘फुनगियों पर डेरा’ का आकर्षक आवरण पृष्ठ बनाया है मधुबनी कला की श्रेष्ठ चितेरी आराधना मिश्रा ने, सम्पादक हैं वरिष्ठ साहित्यकार रश्मि प्रभा जी,
सह सम्पादक हैं पूजा अनिल भारवानी साधवानी जी,
रचनाओं की नोक पलक सँवारने और प्रकाशन का श्रम साध्य दायित्व उठाया है प्रिय ऋता शेखर मधु जी ने एवं अर्चना चाव जी ने,
प्रकाशक हैं - श्वेतवर्ण प्रकाशन|
सच में बहुत मेहनत की है सभी ने| 
हमारी सबकी तो बस बल्ले-बल्ले ही हो गयी| एक ही पुस्तक में इतनी रचनाएं हैं कि शायद तमाम उम्र किसी पत्र पत्रिका में नहीं छपतीं| सभी प्यारी सखियों का हृदय तल से बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार| 
 

प्रतिभा द्विवेदी - 

जितना खूबसूरत शीर्षक उतने ही खूबसूरत कवर पेज से सजी है -अनोखी, अद्वितीय पुस्तक''फुनगियों पर डेरा"
योग ,अध्यात्म ,कला, स्वास्थ्य, विभिन्न टास्क पर आधारित  सुंदर कविताएं और भी बहुत कुछ है इस पुस्तक में।
अरे हाॅं  'रेकी ' के बारे में मुझे बहुत अच्छी जानकारी इस पुस्तक से मिली । हार्दिक बधाइयां प्रियंका बहना इस सुंदर आलेख के लिए । मुझे इस समूह से जोड़ने के लिए गिरिजा दीदी को बहुत-बहुत आभार।😍
रश्मि दी, अर्चना दी,ऋता दी, पूजा, आराधना आपके परिश्रम का अभिनंदन ❤️
सभी सखियों ढेर सारी बधाइयां 💐💐
सभी सखियों के लिए*****

"मन के विस्तृत अम्बर में,
 स्वप्न घटा का फेरा है ।
भावों का पूजन- अर्चन है, 
आस -किरण का घेरा है।
परे हटा भय  तूफानों का,
'फुनगियों पर डेरा' है ।


शिखा वार्ष्णेय - 

मिल गई ...
"चोर चोरी से जाए पर हेरा फेरी से न जाए."
तो ऐसा है कि एक लेखक/ कवि को कहीं भेज दो. लिखने से बाज नहीं आता.
कुछ ऐसा ही हुआ जब एक शौकिया गाने वाले ग्रुप में कुछ हम जैसे बेसुरे, बाथरूम सिंगर को भी जोड़ लिया गया. अब उसमें गानों के साथ किसी न किसी बहाने कुछ लिखने के टास्क भी कर लिए जाते. 
अब चूँकि इस ग्रुप में अधिकांश गायक लेखक भी थे तो बात उठने लगी कि ग्रुप पर हुए टास्क में आई रचनाओं की किताब छपवाई जाए. उसे बेशक बेचा न जाए पर एक याद के रूप में संग्रहित रहेगी. 
अब चूँकि दौर यह है कि कई व्हाट्स एप ग्रुप के एडमिन अपने अपने व्यावसायिक रिज्यूमे में भी बड़ी शान से लिखते हैं कि " फलाने ग्रुप का एडमिन" तो हमने सोचा भला ये क्यों न हो. हमारे एडमिन उनके एडमिन से कम हैं के? फिर क्या था ! ग्रुप की कुछ प्रतिभावान और कर्मठ सदस्यों ने इसका वीणा उठाया और यह प्यारी सी किताब छप कर आ गई. 
इस किताब में, इस ग्रुप के सदस्यों द्वारा लिखे उम्दा संस्मरण हैं, कवितायें हैं, जो अपनत्व से भरे हुए हैं और ज़ाहिर है कि यह पुस्तक सुनहरी यादों की बेहतरीन सुविनियर है.
तो सखियों ! बहुत बहुत शुक्रिया और प्यार "फुनगियों पर डेरा" के लिए.

गिरिजा कुलश्रेष्ठ-
आज सुबह बन गयी जब प्रिय बहिन अर्चना ने मुझे 'फुनगियों पर डेरा' का अनुपम उपहार दिया। 
यह किताब कई अर्थों में अनूठी है। अर्चना ने लगभग सात वर्ष पहले सखियों का एक समूह बनाया ' गाओ गुनगुना शौक से ' । ग्रुप नामानुरूप गीतों का ही है लेकिन केवल गीतों तक सीमित रखना गुणी व विदुषी सदस्याओं का पूरा परिचय नही हो सकता था क्योंकि लगभग सभी ब्लागर हैं और निरन्तर साहित्य सृजन से जुड़ी हैं । सभी की कई पुस्तकें आ चुकी हैं। इसके अतिरिक्त सभी में कोई न कोई अतिरिक्त गुण भी जैसे मधुबनी कला, चित्रकला , पाककला, रेकी, योग, चिकित्सा आदि भी हैं। इसलिए दैनिक गतिविधियों में गायन के अलावा भी आलेख, चित्राधारित कविता कहानियाँ व विभिन्न विषयों पर आलेख शामिल होते रहे हैं। उन्हीं का समवेत संकलन है 'फुनगियों पर डेरा '। यह अर्चना का सपना था जो ऋता शेखर मधु व पूजा अनिल के अथक प्रयासों से और सभी विदुषी सखियों के सृजन से साकार हुआ है। इसका कवर डिजाइन प्रिय आराधना ने किया है। पुस्तक को श्वेतवर्णा प्रकाशन ने छापा है जो प्रशंसनीय है।

संगीता अस्थाना - 

फुनगियों पर डेरा* *
Great Group on WhatsApp*

अहा 🤩 ओहो 🥳 हो हो हो हो 🪅🪅🪅
सन् 2017 से 2024 बेहद खूबसूरत और बहुत प्यारे ग्रुप के गुनगुनाते हुए सफ़र की रुपहली दास्तां। अनोखा डेरा गायें गुनगुनाये के मजबूत वृक्ष की फुनगियों पर सुरों की लहरियों में झूम रहा है। 
 अर्चना दी के इस प्यारे से उपहार को Rashmi Prabha ऋता जी और Pooja जैसे दक्ष संपादक और हमारी लाडो रानी Aradhana जिन्हें मधुबनी पेंटिंग में महारथ हासिल है बहुत खूबसूरती से संवारा है। 
यहां हमारी गुनगुनाहटें गायिकी में बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में ढल जाती हैं, स्वाद का तड़का लगातीं Shobhana दीदी, इत्ती सी हंसी का चुलबुलापन सब समाहित हैं। 
         आने वाले समय के एक शानदार हस्ताक्षर के रूप में ये सोशल मीडिया पर परंपरा का आरंभ हुआ है।
इस समूह की सभी सदस्याओं को अनंत बधाइयां और ढेर सारा प्यार और स्नेह 💫। 
     जानना चाहते हैं न कि क्या है इस पुस्तक में तो सुनिए इसमें हमारी खिलखिलाहटें, हमारे सृजन, विभिन्न टॉपिक्स पर हमारे विचारों को संकलित किया है। यक़ीनन ये सफरनामा आपको महसूस करा देगा कि सभी अंजाने आज जान से भी ज्यादा प्यारे हो गए। यहां सिर्फ प्यार, अपनापन, लाड़, दुलार है।
 विस्तार से फिर लिखूंगी 🙏🥳🤩👍💐🎉💞💃💃💃💃💃💃💃💃...…संगीता


पूजा अनिल -
“गाएँ गुनगुनाएँ शौक़ से” समूह का गठन प्रमुख तौर पर गीत गाकर अपने रचना कर्म को विस्तार देना था। लेकिन इसकी सदस्याएँ ऐसा विस्तार देंगी कि लेखन में इतिहास रचेंगी, ऐसा कभी कोई सोच भी न पाया था! 

एक बार सोचा था कि समूह में जो कुछ लिखा जा रहा है उन रचनाओं को एकत्रित कर लिया तो एक बहुत बड़ा काम हो गया। लेकिन सृजन किए गए कार्य के प्रति यह पर्याप्त नहीं था। फिर सोचा कि टास्क के दम पर हम लोग जो सृजन कर रहे हैं या रचनाएँ लिख कर सहेज रहे हैं, उसे छपवा लिया जाए तो कितना अच्छा हो जाएगा! 

सोचा हुआ एकदम से सच नहीं होता! और सच तो यह है कि समूह के अन्य सदस्यों की सहायता के बिना तो बिलकुल ही सच नहीं हो सकता! 

तो खुली आँखों से देखे गए इस सपने को साकार होने में समय अवश्य लगा लेकिन ऋता शेखर मधु दी के “कृतसंकल्प पूर्णकालिक” (ये शब्द भी संभवतः उनके परिश्रम को पूर्णतः परिभाषित करने में सक्षम नहीं हैं) सहयोग से अंततः यह स्वप्न साझा संग्रह “फुनगियों पर डेरा” पुस्तक रूप में साक्षात् साकार हो गया है। मैं इसलिए भी उनकी विशेषत: आभारी हूँ कि प्रकाशक से संपर्क कर पुस्तक प्रकाशन तक का पूरा ज़िम्मा उन्होंने ही उठाया। 

इस पुस्तक के सपने केवल ऋता दी और मैंने ही नहीं बल्कि कई अन्य समूह सदस्याओं ने भी संजोए थे। उसमें  भी अर्चना चावजी दी का संकल्प सबसे प्रबल था, इतना बलवान कि इस पुस्तक को प्रकाशित होना ही पड़ा। विशेष धन्यवाद उन्हें कि समूह की सभी सदस्यों तक पुस्तक पहुँचे, यह इन्होंने ही सुनिश्चित किया। 

संपादन, प्रूफ़ रीडिंग, चित्र व्यवस्था, कवर सज्जा और प्रकाशन… इस पुस्तक हेतु सब कुछ करते हुए हमने एक तरह से अपने सपनों के विस्तार को ही जी लिया है। 
स्नेह भरा धन्यवाद समूह की सभी सदस्यों को क्योंकि हर एक सदस्य का योगदान इस पुस्तक में अत्यंत महत्वपूर्ण है। रश्मि प्रभा, साधना वैद, शोभना चौरे, अर्चना चावजी, ऋता शेखर मधु, वंदना अवस्थी दुबे, घुघूती बासूती, संगीता अस्थाना, उषा किरण, गिरिजा कुलश्रेष्ठ, संध्या शर्मा, शीतल माहेश्वरी, अंजु गुप्ता, रश्मि कुच्छल, शिखा वार्ष्णेय, आराधना मिश्रा, शुचि पांडे, निरुपमा चौहान, प्रियंका गुप्ता, मधु बत्रा, सुनीति बैस, रचना दीक्षित, मंजुला पांडे, रचना बजाज और मेरी यानि पूजा अनिल की रचनाएँ आप इस साझा संग्रह में पढ़ेंगे। कविता, आलेख और चित्रों से सज्जित इस पुस्तक में आपको स्त्रियों के विभिन्न स्वरूप और पहलू दिखेंगे। कहीं सुख दुःख की अनुभूति, कहीं बालपन , कहीं बुद्धिमत्ता से से ओत प्रोत आलेख हैं, कहीं संवेदना के घने वक्ष मिलेंगे और कहीं स्वतंत्रता की तरफ़ बढ़ते कदम दिखेंगे। 

धन्यवाद इस पुस्तक के प्रकाशक “श्वेतवर्णा प्रकाशन”  को जिन्होंने हमारे सपने को साकार करने में योगदान दिया। 
हम धीरे-धीरे कितना कुछ सीख जाते हैं! जैसे कि शुरू की कल्पना से पुस्तक प्रकाशन तक धैर्य रखना सीखा, नकारात्मक प्रतिक्रिया पर शांति बनाए रखना सीखा, एक दूसरे की भावनाओं को महत्व देना, एक दूसरे के प्रति अधिक संवेदनशील होना। इस किताब का संपादन करना था अतः स्वतः ही संपादकीय लिखना सीखा!  सबसे महत्वपूर्ण बात यह सीखने को मिली कि सपने देखेंगे तो वे अवश्य सच होते हैं, इसलिए सपने देखने में कभी कोताही नहीं बरती जाए। 

इसके बाद यह भी सुखद अनुभव कर लिया कि सबकी ख़ुशी में ख़ुश होना संतुष्ट करता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि संतुष्ट हो गए तो यहीं रूक जाएँगे, अभी तो यात्रा आरम्भ हुई है, अभी तो और भी पड़ाव आएँगे! आप/तुम यूँ ही साथ बनाए रखना! 🥰 
अंत में क्षमायाचना उन सभी से, जिन्हें पुस्तक प्रकाशन प्रकिया के दौरान, जाने अनजाने, मेरे किसी भी कृत्य से कष्ट पहुँचा हो! 🙏
नोट - पुस्तक ख़रीदने के लिए ऋता शेखर मधु जी से संपर्क करें। 🙏

#फुनगियों_पर_डेरा 

(पुस्तक के बाह्य कवर और कुछ अन्य भीतरी पृष्ठों के चित्र इस पोस्ट के साथ लगाए हैं।)

शीतल माहेश्वरी- 
मेहनत रंग लाई 
परिकल्पना साकार हुई 
"फूनगियों पर डेरा" चचहाते पंछियों ने किया आबाद
गुंजित हुआ आंगन;स्वरलहरियों से झंकृत हुआ तनमन 
आगमन नए आगंतुकों का होता रहे;डेरा फुनगियों पर निरंतर बढ़ता रहे
गाए गुनगुनाएं शौक से का ये दरख़्त जीवन उपवन में महकता रहे

बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं


Comments

वाह,अच्छा है यह। सबकी बात एक साथ पढ़ने में आगयी।
Pooja Anil said…
धन्यवाद अर्चना दी। सबके विचार सहेज कर एक साथ पढ़ने के लिए उपलब्ध करवा दिए आपने।
धन्यवाद एडमिन महोदया। एक साथ सबकी पोस्ट पढ़ना अत्यंत सुखद 🌹🌹
रेखा श्रीवास्तव said…
"फुनगियों पर डेरा" मुझे तो एक उपहार की तरह मिली। कोई योगदान नहीं मेरा लेकिन अब एक फुनगी पर मैं भी बैठी मिलूँगी। न परांगत सही फिर सबके साथ चलते चलते जरूर एक साथ दौड़ सकूँगी।
कितना अच्छा लग रहा है सबको एक साथ एक ही जगह पर देख कर। सभी को बधाई ❤️❤️❤️❤️❤️❤️💐💐💐

एक धरोहर है ये पुस्तक... सबको बहुत बधाई, प्यार और धन्यवाद, मेरी जैसी स्लीपिंग पार्टनर को भी इस अमूल्य संग्रह का हिस्सा बनाने के लिए ❤️💕
Love you all ❤️
सबके विचार एक स्थान पर पढ़ना अत्यंत सुखदायक है। कलरव बना रहे। शुभकामनाएं और बधाई सभी को...

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