चित्र एक-भाव अनेक

 यह चित्र चित्रकला में सिद्धहस्त कलाकार आदरणीया उषा किरण दी का है| उषा दी की प्रकाशित पुस्तक 'ताना बाना' से मैंने टास्क के लिए आभार के साथ लिया है|

सभी को इस चित्र पर कविता लिखनी है और गीत भी गाने हैं| प्रस्तुत हैं उन सबकी प्रस्तुतियाँ


















१. वंदना अवस्थी दूबे जी
पिता जी की कविता ससम्मान दी जा रही , नमन उन्हें !!



समर्पण
जीवन के स्वयं समर्पण को मैं जीत कहूं या हार कहूं?
मैने देखी प्राचीर रश्मि,
देखा संध्या का अंधकार,
पूनो की रजत-ज्योत्सना में,
लख सका अमा का तम अपार,
इन काली-उजली घड़ियों को, मैं दिवस या कि अवसान कहूं?
जीवन के स्वयं समर्पण को मैं जीत कहूं या हार कहूं?
जीवन की कश्ती छोड़ चुका,
सरि की उत्ताल तरंगों में,
बढ़ चली किन्तु पथभ्रष्टा सी,
मारुति के मत्त झकोरों में,
लहरों-झोंकों से निर्मित पथ की, कूल या कि मझधार कहूं?
जीवन के स्वयं समर्पण को मैं जीत कहूं या हार कहूं?
अपना सबकुछ खो देने पर
अपनी सर्वस्व प्राप्ति देखी,
सर्वस्व हार जाने पर भी,
अपनी सम्पूर्ण विजय देखी,
तब, इस सम्पूर्ण समर्पण को, वंचना कहूं या लब्धि कहूं?
जीवन के स्वयं समर्पण को मैं जीत कहूं या हार कहूं?
०रामरतन अवस्थी

गीत चयन

नैन हमारे सांझ सकारे

देखें लाखों सपने

सच ये कहीं

होंगे या नहीं

कोई जाने ना

कोई जाने ना यहाँ
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2. रश्मिप्रभा दी

ये तेरे आने का वहम है

या कि तू आया है 

मेरी आँखों में कुछ उमड़ आया है ...

खोलूँगी तो सखियाँ जान लेंगी,

मेरे बिन श्रृंगार के श्रृंगार पर

मुझे छेड़ छेड़ जाएंगी, 

तू जहाँ है,

आ जल्दी से,

तेरे सीने में 

अपने चेहरे की धड़कनें रख दूँ ...।

-- रश्मि प्रभा

गीत चयन

१.मस्त आँखों में शरारत कभी ऐसी तो न थी

ये शरमाने की आदत कभी ऐसी तो न थी

२.तुझे देखा तुझे चाहा तुझे पूजा मैंने

बस इतनी खता है मेरी और खता क्या

३. मेरी नींदों में तुम मेरे ख्याबों में तुम

हो चुके हम तुम्हारी मोहब्बत में गुम

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3. संध्या शर्मा जी

तुम्हारे आने की आहट पाकर

तुम्हारी सांसों की खुश्बू पाकर

इन बंद पलकों में 

कैद कर रक्खी हैं

प्रीत की तितलियां मैने

तुम आकर मेरे माथे पर 

अपने होठों की निशानी दे दो

और आज़ाद कर लो इन्हें ....

__ संध्या शर्मा ___

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4. शोभना चौरे दी

जान लेती हूं बंद

आंखो से तुम्हे

महसूस कर लेती हूं

स्पर्श तुम्हारा,

ये जो मेरे मेरी मुस्कान है

उसके सबब तुम हो

माना की मैं नहीं लाई

तुम्हें इस धरा पर

मेरे शिशु,

पर

मेरी संपूर्णता

का आधार तुम हो।

_शोभना चौरे

=================

5. अर्चना चावजी

लो मूंद ली आंखें मैंने

इन अधरों को आगे करके

पियो जाम तुम जी भर के अब 

उंगलियों में केशों को भरके।


मैं तपती इस अंतर ज्वाला से

स्नेह निर्झर बरसाओ तुम

भीगे भीगे तन पर मेरे

मेघ बन बरस जाओ तुम ।


शांत,एकांत और मौन की भाषा

समझा लेंगे एक दूजे को

जब आंखें खोलूंगी प्रीतम

पा जाऊंगी अनुपम सुख को।

 

-- अर्चना चावजी

 गीत चयन--

१.ये नयन डरे डरे ये जाम भरे भरे

जरा पीने दो कल की किसको खबर

मुझे जीने दो

२. दो हंसों का जोड़ा बिछड़ गयो रे

३. सजना है मुझे सजना के लिए

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6. साधना वैद दी

अब आ भी जाओ ! 

भोर भये तक तारे गिन गिन 

काटी थी जब रैना 

मूँद लिए थे नैन तभी 

खोकर मन का सुख चैना 

ठान लिया जब सम्मुख होगे 

तब खोलूँगी नैना 

सुन कर ही पदचाप तुम्हारी 

मुखरित होंगे बैना

पाकर मृदु स्पर्श पुलक  

चहकेगी मन की मैना 

जो तुम आओ मेरे सामने 

तब ही खोलूँ नैना !

अब आ भी जाओ ! 

------साधना वैद 

 गीत चयन

१. तस्वीर तेरी दिल में जब से उतारी है

२. म्हारो काजलियो बनो पलका में बंद कर रख लूँ

३. अश्कों से तेरी हमने तस्वीर बनाई है

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7. अंजु गुप्ता जी

हे परमात्मा !!

मैं तेरी ही कृति हूँ...

तेरी ही प्रति हूँ....

फूल कर ये अर्पण तुझे

हर दिन प्रार्थना ये मैं करूँ...

जब जब भटकूँ मैं पथ पे अगर

तो राह दिखा देंना तू मगर

 करूँ  जो पाप मैं कोई

सजा देना तू उसकी वोई

 सब कुछ देना तू ...कुछ भी लेना तू...

बस हसरत एक यही है मेरी भर जीवन

प्यार न देना कभी भी तू मुझको कम


बंद नैनो में भी रहे तू ही समाया..

रहे मेरे आसपास भी तू ही मंडराया..

खोलूँ जब जब नैन ये मेरे..

तू ही हो बस सामने मेरे..

 निकलूँ जब महायात्रा पर मैं

तो ........

अधखुली पलकों के भी तले 

 हाथ मेरा साथ हो तुम्हारे ही हाथ तले

,इस भव सागर से परे

ले चल मुझे चाहे वहाँ वहाँ

जहाँ जहाँ भी साथ  तेरा चले

अंजू गुप्ता (तितली).....

२.

सुनो!! तुम प्रेम...

आ गये ना तुम,तो फिर सुनो ध्यान से...👍


मैं महसूस कर रही हूँ तुम्हें, अपने रग रग में होके तन्मय

मैं खुशबू ले रही हूँ तुम्हारी,अपनी साँसों में...

मैं गीत रच रही हूँ तुम्हारे, अपने मन मे...

मैं थिरक रही हूँ तुम्हारी और अपनी साँसों की थाप पर..

मेरे ये अधर ,,तुम्हारे इस नील कमल(चित्रित फूल) से अधरों का सामीप्य पा मचल उठे हैं....

मेरा तन तुम्हारे उन सैकड़ों स्पर्श की किताब  बांच गया क्षण में....


तुम्हारे प्रेम की मादकता ,मुझे कहीं भृमित न कर दे......

तुम्हारे पंखुड़ियों की डंडी बाजू रूप मे मेरा अवलम्ब बन कही तुम्हें रोक न ले जाने से कहीं किसी शिवालय में...

जमाने की नजरों से तो मैं तुम्हें क्या बचाऊंगी

पहले खुद की नजरों से तो बचा लूँ तुम्हें...

कहीं मेरी ही नजर ना लग जाये तुझे प्रेम मेरे

सो,इसीलिये ये नैन बंद किये हुए मैने मेरे...

खुद की नजर से बचाने को तुझे

ये अपनी बन्द नजरों की मौली एक पहना तूझे

दीदार नही तेरा,, बस पूरा आत्मसात किया यूँ  मैने

अंजू(तितली)....

गीत चयन

पलकों के पीछे से क्या तुमने कह डाला

फिर से तो फरमाना....

नैनों ने सपनों की महफ़िल सजाई है

तुम भी jruuuuur आना

=======================

8. गिरिजा कुलश्रेष्ठ दी

रात दिन मुझको तपाए

सिर्फ तेरा ध्यान.

स्वत्व मेरा क्या कहां है

हर जगह तो तू रमा है.

हाशिये पर वास मेरा, 

दो फलक तेरा जहां है.

सर्वव्यापी तू, बहुत संकीर्ण मेरा ज्ञान.. 

हर खुशी उपहार तेरा 

दर्द भी है प्यार तेरा.

जो रुके तुझको वही दे, 

क्या कहूं कुछ भी न मेरा.

नाम तेरा तिमिर वन में 

ज्योति का सन्धान... 

ज़िन्दगी यूं रुक न जाए.

सांस का घट चुक न जाए.

प्रतीक्षा की ज्वाल में, 

विश्वास देखो फुंक न जाए.

तू अवनि है तू गगन है, 

तू मेरा दिनमान...

-- गिरिजा कुलश्रेष्ठ

गीत चयन

१.दिल में तुझे बिठाके

कर लूँगी मैं बंद आँखें

पूजा करूँगी तेरी

होके रहूँगी तेरी

२.आओगे तुम जब साजना

अँगना में फूल खिलेंगे

बरसेगा सावन झूम झूम के

दो दिल ऐसे मिलेंगे

======================

9. डॉ उषा किरण दी

हठ न करो 

मत कहो बार- बार

नहीं खोलूँगी पलकें

कभी नहीं !

क्योंकि जानती हूँ 

कि इन्हें खोलते ही 

जग जान जाएगा

मेरे मन की प्रीत !

मेरी आँखों की नम भाषा

कह देगी मेरे मन की

अनकही सब दास्तान 

नहीं चाहती कोई जाने

कोई समझे

मेरे दिल की धड़कनों में 

बसा संगीत 

गाता है कौन सा राग ?

बन्द रहने दो पलकें 

अभी हठ न करो

ए री सखि…!!

          — उषा किरण

स्थूल से सूक्ष्म होते जाना ही है

            जीवन- यात्रा

  खाना- पीना ,रोना- हंसना

        सबके बीच खुद को

               रोपते जाना !

   उलझे हुए खुद को खींच कर

                लुढ़का कर

         आगे बहा ले चलना

               पर कई बार…

            खुद को ही हमने

          कील भी तो दिया है!

             कब, कौन हवा

            कहाँ उड़ा ले चले

                किसे पता ?

                 होकर भी

     स्वयम् अपने हम हैं कहाँ?

       कभी बहुत छूट कर भी

                पूर्ण हैं हम

                 और कभी

            सम्पूर्ण होकर भी

                घट रीता….!!

गीत चयन

१.ज़िन्दगी के रंग कई रे

साथी रे, जिंदगी के रंग कई रे

ज़िंदगी दिलों को कभी तोड़ती भी है

ज़िंदगी दिलों को कभी जोड़ती भी है

२. छाप तिलक सब छीनी रे

मोसे नैना मिलाए के

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10.पूजा अनिल

गीत चयन

माई री हाँ माई री मैं कासे कहूँ पीर अपने जिया की 
माई री ओस नयन की उनके 
मेरी लगी को बुझाये ना 
तन मन भीगो दे आके 
ऐसी घटा कोई छाये ना 
मोहे बहा ले जाये ऐसी लहर कोइ आये ना 
ओस नयन की उनके मेरी लगी को बुझाये ना 
पड़ी नदिया के किनारे मैं प्यासी 
पी की डगर में बैठा मैला हुआ री 
मोरा आंचरा मुखडा है फीका फीका 
नैनों में सोहे नहीं काजरा कोई 
जो देखे मैया प्रीत का वासे कहूं माजरा 
पी की डगर में बैठा मैला हुआ री मोरा 
आंचरा लट में पड़ी कैसी बिरहा की माटी माई री ...

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11.डॉ मंजुला पांडेय जी

तुम्हारा साथ 

तुम्हारा स्पर्श 

तुम्हारा ध्यान 

देता है मुझे

 अपूर्व शांति व सुकून 

खो जाती हूं मैं 

भूल जाती हूं

 स्वयं को

 अपने अस्तित्व व

अहं को....।


 डॉ मंजुला पांडेय

गीत चयन

तेरा मेरा साथ रहे

धूप हो छाया हो

दिन हो के रात रहे

तेरा मेरा साथ रहे

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12. निरूपमा चौहान जी

आंखें बंद कर 

हाथ में फूल लेकर 

जब ध्यान करती हूँ तुम्हारा हे प्रभु

अश्रु टपकने लगते इन आँखों से

और मन प्रफुल्लित हो

चिर मुस्कान ले आता 

होंठों पर और मन 

पुकारता बारम्बार

कृपा है नाथ  ..कृपा🙏

-- निरूपमा चौहान

गीत चयन

हे रोम रोम में बसने वाले राम

जगत के स्वामी हे अन्तर्यामी

मैं तुझसे क्या माँगूँ

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१३. ऋता शेखर

बंद पलकों के पीछे
मैं मिल रही हूँ उन सबसे
जो हमें छोड़ गए
निष्ठुर बन मुँह मोड़ गए
मैं महसूस करती हूँ
उनका प्यार
उनका स्पर्श
उनका अपनापन
फिर खो जाती हूँ
उस सफर पर
जहाँ एक सुनहरा रथ होगा
और मैं मिलूँगी
उन सभी से
रू-ब-रू
२.
एक पलक
हजार सपने
एक जिन्दगी
हजार अपने
उन अपनों में
सबसे प्यारी तुम
मेरी लाडली |
--ऋता शेखर

गीत चयन

१.दर्शन दो घनश्याम नाथ मोरी
अँखियाँ प्यासी रे

२.कहीं दूर जब दिन ढल जाए
साँझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आए
मेरे खयालों के आँगन में
कोई सपनों के दीप जलाए

३. हर घड़ी बदल रही है रूप जिंदगी
छाँव है कभी कभी है धूप जि़दगी
हर पल यहाँ जी भर जिओ
जो है समां कल हो न हो
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Comments

क्या ही सुंदर संयोजन!!!
नमन है आपकी लगन को 🙏
इसे कहते हैं एकाग्रता और निष्ठा
Archana Chaoji said…
बहुत शानदार कार्य करवाया आपने, और ब्लॉग पर संयोजन कमाल का ,मेहनत और समय दोनों के लिए नमन
Sadhana Vaid said…
वाह ! बहुत ही सुन्दर संकलन ! अद्भुत सृजन है सभी सखियों का ! आपकी लगन और आपके समर्पण को नमन !
वाह यह तो बहुत ही अनुपम आयोजन है. चित्र आधारित सभी की कविताएँ शानदार और गाए गये फिल्मी गीत, तो कमाल.

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