''गायें गुनगुनाएँ शौक से'' समूह में 1 फरवरी 2022 का टास्क




1 फरवरी 2022 का टास्क नोट कर लें -
यह तस्वीर टर्किश आर्टिस्ट अब्दुल्लाह एविन्दार द्वारा ली गई है। इसे देख कर जो भी भाव आयें, उस पर 50 -100 शब्द लिखें। कविता, कहानी, लघुकथा, दोहा, हाइकु, ग़ज़ल, शायरी सब मान्य है। गाना भी उसी भाव पर गायें।
- पूजा अनिल 

सदैव रचनात्मक रहने वाले ''गायें गुनगुनाएँ शौक से'' समूह में आज के टास्क हेतु हमें समूह में जो रचनाएं जिस क्रम में प्राप्त हुईं वे सभी उसी क्रम में  यहाँ प्रदर्शित की जा रही हैं।  

रश्मि प्रभा 
उम्र कोई हो,
एक लड़की-
१६ वर्ष की,
मन के अन्दर सिमटी रहती है...
पुरवा का हाथ पकड़
दौड़ती है खुले बालों में
नंगे पाँव....
रिमझिम बारिश मे !
अबाध गति से हँसती है
कजरारी आंखो से,
इधर उधर देखती है...
क्या खोया? - इससे परे
शकुंतला बन
फूलों से श्रृंगार करती है
" बेटी सज़ा-ए-आफ़ता पत्नी" बनती होगी
पर यह,
सिर्फ़ सुरीला तान होती है!
यातना-गृह मे डालो
या अपनी मर्ज़ी का मुकदमा चलाओ ,
वक्त निकाल ,
यह कवि की प्रेरणा बन जाती है ,
दुर्गा रूप से निकल कर
" छुई-मुई " बन जाती है- यह लड़की!
मौत को चकमा तक दे जाती है....
तभी तो
"रहस्यमयी " कही जाती है...!
- रश्मि प्रभा 
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गिरिजा कुलश्रेष्ठ 
पड़ोस की लड़की
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बड़ी हो रही है इन दिनों ,
मेरे पड़ोस में एक लड़की
बदल रही है धीरे धीरे
बसन्त की अँखुआती टहनी में.
गुलमोहर और कचनार
खिलने लगे हैं आँखों में .
बालों में महकते है ,
शिरीष ,मोगरा ,चम्पक.
तितली सी उसकी नज़रें
इधर-उधर मंडराती,
हाथ नहीं आतीं .
खोया सिक्का तलाशती सी नज़रें
गली के नुक्कड़ तक
कुछ खोजती हैं ,
मोड़ के उस पार जाने की सोचती हैं .
बड़ी हो रही वह लड़की
नहीं मानना चाहती कोई बंदिश.
हर बाधा या मुश्किल से बेखबर
हवा में उड़ते हैं पंखिनी से
सतरंगे सपने .
बेखबर कि
कितने खिड़की दरवाजे
चिपके रहते हैं उसकी दीवारों पर
पर बिना परवाह वह लड़की
बढ़ रही है आगे
ढेर सारे सपनों के साथ
जैसे निकला हो कोई
नोटों से भरा बैग लेकर
भीड़ भरे बाज़ार में
अकेला ही। 
- गिरिजा कुलश्रेष्ठ 
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अर्चना चावजी 
नन्ही सी जान
भरने चली उड़ान
दूर क्षितिज पर
नजरें जमाए

दूर वहीं है, कहीं उसके पापा
मिलने को उनसे, आधा समंदर है नापा

लेना है उसको वो सिंदूरी साड़ी
मां को सजाएगी जिसमें वो प्यारी

समंदर उसके आने से पीछे हटा है
हौसले से उसके वो बौना पड़ा है।

मुस्काई धरती साथ उसके चल रही है
कदमों के नीचे उसके थिरक रही है।

(अलग अलग लिखा)
-अर्चना चावजी 
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अंजू गुप्ता (तितली)
तितली से मै पँख लगाके ,तितली सी मै उड़ती फिरूँ
इन नन्हें पाँवों से फिर मै
दूर गगन तक  दौड़ लगाके
 बैठ क्षतिज के ऊपर अपनी सारी इच्छाओं को गढूं...

पँखो और पाँवों के इस संतुलन में देखूँ मै
अपने हर आने वाले सपने का पूर्ण होना
जिससे जीत सकूँ मै इस जग का कोना कोना..

फिर वो हो चाहे बीच समुंदर
 या हो नभ का कोई भी कोना...

जग के कोने को नापते नापते फिर
उस से उपजी उस थकन को होगा मुझे काटना ..

 जिससे फिर  इन  सजीले सपनों
  को तब सिलके पहना सकूँ मै
अपनी खुशियों को फिर कोई जामा सुन्दरऔर सलोना.
क्योकि मुझे होगा अब हर हाल में जीना ..

जहाँ जहाँ  मै  रोपूं ये नन्हे नन्हे कदम
वहाँ वहाँ लहलहायें बन बटवृक्ष  मेरे  वो सभी सपन

- अंजू(तितली)
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साधना वैद
उड़ने लगा है मेरा भी मन

देखो लग गए हैं पंख
मेरे सपनों को
थिरकने लगे हैं मेरे पाँव
और फ़ैलने लगे हैं
पानी के ढेर सारे
छोटे बड़े वलय मेरे चहुँ ओर
मेरे सामने है
खारे पानी से भरे सागर का
असीम, अगाध, अथाह विस्तार
और मेरे मन में है मीठे सपनों की
बहुत ऊँची उड़ान !
इतनी ऊँची कि जहाँ तक
कोई पंछी, कोई जहाज न पहुँच सके !
सब कहते हैं मैं बड़ी हो गयी हूँ !
लेकिन देखो तो ज़रा
कहाँ से बड़ी हो गयी हूँ मैं ?
पानी में मेरा प्रतिबिम्ब देखो
कितनी छोटी सी तो हूँ मैं !
बिलकुल नन्ही सी
अबोध, मासूम, नाज़ुक, भोली !
तितलियों को अपनी झोली में समेटे
यहाँ वहाँ उड़ती फिरती हूँ मैं भी
तितलियों की ही तरह !
हाँ इतना ज़रूर है
तितलियों के साथ
अब उड़ने लगा है मेरा भी मन
क्या यही होता है बड़ा होना ?
- साधना वैद
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शोभना चौरे 
ये नन्ही सी लडक़ी
उगते सूरज सी लड़की
नई आशाओं को,
सहलाती
उन्हें सँवारती
मासूम सी लडक़ी
होठों पर प्यार के तराने
आंखों में उड़ान के सपने
हाथों में जिम्मेवारी के कंगन
पहन
पैरों में चंचलता
लिए
रंगबिरंगी
तितली सी
अपनी हदे
पहचानती
एक
प्यारी सी
अल्हड़ सी
मझधार में भी
अडिग खड़ी
मजबूत सी लड़की।
- शोभना चौरे
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घुघूती बासूती 
आज तुम्हारा था
कल मेरा होगा
 बीत रहा है आज
 कल आता ही होगा
 यू नहीं उड़ती कभी
 तितलियां सागर पर
 किंतु मन आकाश पर
कभी भी उड़
 सकती  है तितलियां।
 सुना है, पढ़ा है कि पैरों से चखती  है तितलियां,
मैं भी तो पैरों से
 चख रही हूं सागर
 और उसकी लहरों को।
 आ रही हूं मैं
आ रहा है मेरा कल
कल जो मेरा होगा
जिसे मैं रचूंगी
और मैं जिऊंगी।
- घुघूती बासूती 
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पूजा अनिल 
नन्हे कदम रोपती है अपने आने से, 
ख़ुशी के कई फूल खिलाती है बेटी, 
मासूम मुस्कान के पावन पानी से ,
 नेह परिवार का सींचती है बेटी। 

जमा करती है छोटे पत्थर, कंचे, 
सूखे पत्ते, तितलियों के पंख और यादें, 
सहेज लेती हैं सब कुछ बड़े जतन से, 
एक दिन मीठी याद बन जाने के लिए। 

घर में बिखेरती हैं हँसी के गुलगुले, 
फुदक कर जो बनाती हैं साबुन के बुलबुले, 
होती हैं दृश्यमान, पानी में बनी छाया सी, 
देवी की तरह अचानक अदृश्य हो जाने के लिए। 

जगा देती हैं धड़कनें, जब वे थिरकती हैं, 
माँ बाबा की उम्मीदों में करती हैं पार सीमायें, 
बादलों को उचक कर छूने की ललक में, 
गूंजती है बिजली सी आवाज़ बन जाने के लिए। 
- पूजा अनिल 
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उषा किरण 


 
*जिद्दी लड़की *

…………………..


मेरे भीतर निरन्तर जंग चलती रहती है

एक ज़िद्दी लड़की और समय की

समय पकड़ कर सफेदी से रंग देना चाहता है

उसके बाल

उसका मन

उसके सपने

लेकिन वो हाथ छुड़ा कर हर बार

खो जाती है बचपन के गलियारों की 

भूल- भुलैया  में

जहाँ छिपा रखी है उसने

शराबी गुड़िया नीली आँखों वाली

कुछ गुट्टे, कुछ रंग- बिरंगी काँच की चूड़ियों के टुकड़े, कुछ तिलस्मी सपने और कुछ 

रंग- बिरंगी तितलियाँ …

मेरे भीतर छुपी बैठी वो जिद्दी बच्ची

बाहर आने से डरती है

अभी बड़े होने से साफ इंकार करती है…!!

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ऋता शेखर -

वह प्यारी सी लड़की...


वह प्यारी सी लड़की

भरना चाहती थी

आँचल में अपने

एक मुट्ठी आसमान

ब्रह्म से सांध्य निशा तक

पूर्व से पश्चिम दिशा तक

गगन का हर रंग

प्राची का हर छंद

इंद्रधनुषी ख्वाब

बटोर लाती आँचल में|


प्रात की मधुरिम बेला 

वेद ऋचा का गान लिए

पवित्र सी मुस्कान लिए

चकित देखती ध्रुवतारा

तोड़ लाती किरन एक

पिरो देती मुस्कुराकर

पंखुड़ियों पर बिखरे

कोमल शबनमी मोती

मखमली आँचल बनाती 

वह प्यारी सी लड़की|


भरी दोपहरी में

निज साया सिमटता

अपने ही आसपास

माँग लाती सूरज से

तपता सा लाल धागा

पिरो देती हुलसकर

दिव्य श्रम बिंदु

दिप दिप करता आँचल

देख देख इतराती

वह प्यारी सी लड़की|


शांत क्लांत साँझ नभ से

माँग लाती उधार

सुरमई सांतरी तार

टपक जाते स्निग्ध दृगों से

इंतेजार के मोती चार

मौन दर्द का साक्षी बन

मधुर मिलन नैनों में भर

झिलमिल झिलमिल

फैला लेती थी आँचल

वह प्यारी सी लड़की|


निशा की मूक बेला में

फलक से इकरार कर

चंदा से मनुहार कर

चट से तोड़ लाती

चाँदनी की ओढ़नी से

एक किरन रुपहली सी

टाँक कर तारे सितारे

अपने अम्बर आँचल पर

पुलकित हो जाती

वह प्यारी सी लड़की|


नव सृजन का प्रसव झेल

नींद के आगोश से निकल

नव प्रात की अँगड़ाई ले 

चहक जाती देखकर आँचल

अपरिमित विस्तार तले

गौरैया बुलबुल तितलियाँ

नन्हे छौने मृगों के

निर्भीक निडर सुरक्षित

उनकी नजरें उतारती

वह प्यारी सी लड़की|


अम्बर में फैले चार पहर

कह जाते जीवन का सफर

और उन्हें शब्दों मे ढालती

एक प्यारी सी नज़्म बन जाती

वह प्यारी सी लड़की |

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रश्मि कुच्चल


रचना मेरा स्वप्न रहा और मेरा कर्म ,

रही दोनों की अपनी अपनी ज़िद ।

कि तुम आओगे हर बार मिटाने जो मैंने रचा ,

रखके पांव पल पल रीत रहे समय पर ।

फीनिक्स पढ़े जाते हैं हर युग में ,

एक मिथक जो राख़ से जन्म लेता है ।

मिथक नहीं मैं ,नाही मेरा कोई काश ,

अपनी छाया से जन्मती हूँ ।

तन- मन से कोमल ,संकल्प में अंगार ,

निश्चय है जाना है पार ।

डूबते सूरज से मिली किरणें

उगती हैं नित बनके पंख ,

तुम आओ अपने आवेग से तट पर

चाहे जितनी बार ......

तितलियों के हौसलों को समंदर कब छू पाया है !

हार मानकर लौट जाना तुम्हारा सच है ,

रेत पर मेरा खड़े रहना मेरा सच है ।

                                               


Comments

संग्रहित देखकर मन खुश हो जाता है, यह प्रयास प्रशंसनीय है ।
हाँ जी, बिलकुल सही। जिस गति से हमारा समूह रचना करता है तो इसी की सदैव आवश्यकता थी हमें। 
Sadhana Vaid said…
वाह । अत्यंत सराहनीय कदम । सब एक ही जगह संकलित हो जाती हैं यह बहुत अच्छी बात है । जब जी चाहा पढ़ लिया । सभीकी कल्पना की उड़ान बहुत सुंदर बहुत मनोरम ।
Archana Chaoji said…
ये फटाफट वाला कार्य बड़ा मजेदार लगता है ।और सब भाग नहीं लेकर भी शामिल रहते है ये अच्छा लगता है। धन्यवाद पूजा सहेजने के लिए।
वाह ! सुन्दर संकलन। सभी की रचनाएँ मनभावन, सार्थक। सभी को बधाइयां।
वाह, बहुत बढ़िया संकलन.
वाह बहुत बढ़िया संकलन
shobhana said…
वाह बढ़िया संकलन

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