श्री राम के नाम एक पत्र


बुधवार 21  अप्रैल 2021 को रामनवमी के अवसर पर हमारे ग्रुप में टास्क दिया गया --  ''श्री राम के नाम एक पत्र लिखें जिसमें कोई शिकायत न हो। पत्र साझा करें लिखित एवम् ऑडियो रूप में।'' 

इस टास्क के जवाब में जिन सदस्यों ने अपने पत्र भेजे हैं, उन पत्रों का संकलन है यह पोस्ट।  



 

 

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रचना बजाज का पत्र - 
नमस्ते पूजा जी, आपने कहा है  राम जी को पत्र में शिकायत नहीं हो, लेकिन मेरे लिखे पत्र में तो तमाम शिकायतें हैं करने दें कृपया 🙏🙏🙂
हे भगवान !!!

(* मेरा पत्र राम भगवान के नाम*)

नमस्कार राम जी,
मै आप ही की बनाई सृष्टि के एक हिस्से, ‘भारत’ से हूँ. कुछ दिनों पहले से ही ये बातें आपसे करना चाह रही थी..देर से ही सही… आप इस पर गौर करेंगे ऐसी आशा है.
यहाँ भारत मे सब कुछ ठीक नहीं है और मुझे लगता है आपके वहाँ भी इन दिनों कुछ गड़बड़ चल रही है.
थोड़े-थोड़े दिनो में ये क्या हो जाता है आपको? आप अजीब अजीब से चमत्कार दिखाने लगते हैं! इतने करोड़ों जीव बना कर आप थके भाई जो नित नए बैक्टीरिया, वायरस बनाते रहते हैं ?? अब ये सब करने की आपको क्या जरूरत आ पड़ती है? क्या आपको डर लगता है कि लोगों का आप पर से विश्वास उठ रहा है? अगर ये बात है तो आप मेरा यकीन मानिये कि ऐसा कुछ नही हो रहा.भारत मे शायद ही ऐसे लोग हैं,जो आपको नही मानते. अगर राज की बात बताऊँ तो जो लोग खुद को नास्तिक कहते नही थकते, वो भी अपने जन्मदिन के दिन मन्दिर जाते हैं!!,यदि वे शादी-शुदा हैं तो अपनी पत्नी की खुशी के बहाने से और अगर शादी-शुदा नही हैं तो अपनी माँ की खुशी के बहाने से!!
और फिर हजारों-हजार मन्दिर, हजारों पोथियाँ और हजारों कथाएँ क्या कम हैं जो कोई आपके अस्तित्व को नकारने की हिम्मत करे ?
इन दिनों तो लोग करोड़ों रूपये खर्च करके आपके लिये विभिन्न शहरों मे भव्य मन्दिर बनवा रहे हैं, लाखों रूपयों के मुकुट चढ़ा रहे हैं! और ये सब तब हो रहा है जब कि हजारों लोग ऐसे हैं, जो दो जून की रोटी खाने को मोहताज हैं, उनके रहने को घर नही है. अब इतना सब होकर भी आपको शान्ति नही है?
अब सही वक्त आ गया है कि आप ये छोटे- मोटे चमत्कार छोड़कर कुछ असली जादू दिखाएँ.
चलिये मै बताती हूँ आपको क्या करना है—-
१. जो बहुत गरीब लोग हैं ना ,  उनके घरों मे जाकर कुछ पैसे रख दें,ज्यादा नही कुछ सौ रूपये ही चाहिये उन्हें..

२. कुछ गाँवों मे गरीबी की वजह से आज भी बच्चे भूख से मर जाते हैं,जाइये और उनके घर के खाली डिब्बों मे कुछ अन्न रख दीजिये…

३. आप भला  क्यों पहले से ही जीवन से परेशान लोगों को परेशान करते हैं ? दिखना ही है तो हमारे देश की संसद की दीवारों पर दिखाई दीजिये!! वहाँ काम कर रहे लोगों ने दुनिया की किसी भी चीज से डरना छोड दिया है, हो सकता है आपको देखकर वे कुछ डरें और अपने कर्तव्यों का ठीक से पालन करें !

और भी बहुत कुछ है कहने को..इन बातों पर आपकी प्रतिक्रिया देखकर बाकी बातें बताऊँगी…
और हाँ बहुत रह चुके आप छुप- छुप कर, अब सामने आइये और अपनी ही बनाई सृष्टि के दुख-सुख मे उसके साथी बनिये!!! अब तो अन्तर्जाल पर भी छद्म रहने का चलन नही रहा,यहाँ भी लोग वास्तविक हो चले हैं….
अगर आपके स्वर्ग मे भी अन्तर्जाल की सुविधा हो तो बताइयेगा….अब पत्र लिखने का जमाना नही रहा..ई-मेल या चैट के जरिये आपसे कई लोग सम्पर्क साध सकेंगे!!!! 
(एक पत्र मैने २००६ में लिखा था उसी को थोड़े हेर फेर से प्रस्तुत किया है 👆🙂🙏)

धन्यवाद.
रचना. 
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रश्मि प्रभा का पत्र - 
श्रद्धेय राम,

सागर में तुमने जो पत्थर डाले, वह डूब गए, क्योंकि सच यही है कि तुमने अगर साथ छोड़ दिया तो डूबना ही है । जो पत्थर तैरे, उनपर तुम्हारा नाम था । जिनके मन में तुम हो, ज़ुबान पर हो, जैसे भी हो - उनकी रक्षा करो, उन्हें डूबने से बचा लो । किसी को अगर शिकायत भी है तो हे राम, तुम तो जानते हो कि शिकायत अपनों से ही होती है । भक्त हनुमान को भी हुई थी, जब तुम माँ सीता के साथ बैठे थे और द्वारपाल ने उनको तुम्हारे पास जाने से मना कर दिया । कितना दुख हुआ था हनुमान को और तुम्हारे यह कहने पर कि सिंदूर की वजह से माँ सीता एकांत में भी तुम्हारे साथ रह सकती हैं, हनुमान सिंदूर से स्नान कर आ गए थे ।
मैं ऐसा तो कुछ नहीं कर सकती, पर शून्य में बहते हर अश्रुकण पर लिखती हूँ "श्री राम" । निरन्तर लेते हर नाम पर लिखती हूँ तुम्हारा नाम ... बचा लो राम, कहो अपने प्रिय हनुमान से, संजीवनी लाएं । इस बार तो सही में पूरे पहाड़ की ज़रूरत है ।
बहुत झेला हमने कलियुग को, अब तो हमारे हिस्से सतयुग लिख दो ।

भक्त हनुमान नहीं,
पर भक्त रश्मि हूँ
करती हूँ आगाज़ - जय श्री राम ।
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शिखा वार्ष्णेय का पत्र -
आदरणीय राम जी,
राम राम
आशा ही नहीं पूरा विश्वास है कि आप सभी सपरिवार वहां सकुशल होंगे।
जैसा कि आप जानते ही हैं कि आपकी बनाई इस दुनिया का हाल आजकल क्या है।
मुझे यह तो नहीं पता कि आपने क्या सोच रखा है या क्या इसके पीछे आपकीं मंशा है। परंतु जो भी हो यह तरीका ठीक नहीं लग रहा। मनुष्य और मनुष्य स्वभाव आपने ही बनाये हैं तो उनके अहसासों की परवाह करना भी आपका ही काम है। आपके भक्त आप पर श्रद्धा रख कर सारा झमेला झेल रहे हैं पर कब तक झेल पाएंगे पता नहीं। उनकी बर्दाश्त की भी एक सीमा है। आपने ही तय की है तो इतनी परीक्षा मत लेना कि भरोसा करने वाला भी कोई न बचे।
मुझे याद है जब हम बच्चे थे तो परीक्षाओं से पहले हथेली पर "राम राम" लिख लेते थे। हमें यकीन हो जाता था कि अब परीक्षा अच्छी जाएगी। आज भी कभी कभी जब बहुत परेशान होती हूँ तो ऐसे ही आपका नाम लिख लेती हूँ कि आप तार लोगे।
बस भरोसा बनाये रखना प्रभु
सादर
एक भक्त 
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ऋता शेखर मधु का पत्र - 
रोम रोम में बसने वाले हे श्रीराम!
मेरा नमन, मेरी आस्था , मेरा विश्वास स्वीकारें।
आप हमारे मन में बसे हैं महाग्रन्थ के रूप में। आपने संसार में मानव जन्म लेकर मनुष्यों के लिए बहुत सारे सिद्धान्त स्थापित किया है। आपका जन्म ही मुझे आश्चर्यचकित करता है। जन्म लेने के पहले ही आपने माता कौशल्या को अपना भव्य रूप दिखाया, बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई माता अपने गर्भस्थ शिशु के लिए ऐसी कल्पना करती हो जिसका व्यक्तित्व अम्बर से भी विशाल बने।
एक पुत्र के रूप में आपने अपने पिता के वचनों का मान रखने के साथ अपनी सौतेली माता का भी मान रखा क्योंकि  सभी माताएं माता ही होती हैं, सगी या विमाता नहीं।
यदि बात करें माता सीता की...तो आप सदा आलोचना के पात्र होते हैं कि आपने सती सावित्री पत्नी के लिए सदा अग्नि परीक्षा को ही आगे रखा। ऐसा इसलिए कि आप जानते थे कि आगे भी स्त्रियाँ इन्हीं परीक्षाओं से गुजरती रहेंगी।
याद है न आपको,जब लक्ष्मण जी बेहोश हुए थे तो उनके उपचार के लिए आपके प्रिय भक्त हनुमान  संजीवनी बूटी के लिए पूरा पर्वत ही ले आये थे।
हे रघुनन्दन, आज आपके असंख्य भक्तों को उसी बूटी की आवश्यकता है। मुझे पूरा विश्वास है कि आप सबके लिए वह संजीवनी भेजेंगे जिससे सम्पूर्ण मानव जाति की रक्षा हो सके।
आज आपके  अवतरण से हमारे मन में आशाओं के बहुत सारे दीप प्रज्वलित हो गए हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि आपकी छत्रछाया में यह संसार पुनः जगमग करेगा, पुनः सारे वन उपवन सुरभित होंगे, दूरियाँ मिटेंगी।
आप अंतर्यामी हैं, आपमें हम सबकी श्रद्धा बनी रहे, इसका उपाय कीजिये। ईश्वर और भक्त ...दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। आशा है लव कुश कुशलपूर्वक होंगे।
अब यह पत्र बन्द कर रही, अगले पत्र में आपको धन्यवाद लिख सकूँ, इसी आकांक्षा के साथ
आशा का दीप थामे
एक श्रद्धालु 
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शोभना चौरे का पत्र - 
हे राम
कोटि कोटि प्रणाम
सारा संसार तुम्हें जानता है कि दुष्ट रावण का वध कर आपने लंका पर विजय पाई।
और विभीषण का राज्याभिषेक किया।

मैं जानती हूँ तुम्हें की न ही तुम्हे राज्य का मोह है न सत्ता का।
तुम तो सबके दुःखों को हरने वाले हो।
न्याय प्रिय हो तो विनती है न्याय करो कि
रोज कमाने खाने वालों का चूल्हा जलता रहे।
एक कथा है जब रामराज्य स्थापित हुआ  तो सीता माँ ने कहा _ राम सबको समान सुख दे दो सारी जनता को घर बैठे बैठे सारे सुख दे दो तब आपने सीता की बात मानकर वही किया जो माँ चाहती थी कुछ दिनों बाद सीता मा के महल की छत टपकने लगी कोई मरम्मत करने नही आया बुलाने पर भी तब सीता माँ बोली
ये क्या ?अब क्या होगा?तब आपने उत्तर दिया कि जब सब अपना काम छोड़कर बैठे खाएंगे तो यही होगा इसीलिए अपने काम से कोई हाथ न खीचे कर्म करते रहने से ही जीवन चलेगा प्रत्येक इंसान की कार्यक्षमता और बुद्धि के हिसाब से उसे मेहताना मिलेगा।
ऐसे विवेक पूर्ण उत्तर देने वाले सर्व व्यापी
राम  न्याय प्रिय राम इस काल में उसी रोजी रोटी कमाने वाले इंसान पर एक छोटे से वायरस अपना अस्त्र छोड़ा है
तुम भी पुकार सुनो और आज के दिन सबका दुःख हर लो मेरे राम।
राम राम जी 

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प्रवीणा जोशी का पत्र - 

आज का टास्क बनाने वाली सखी को बहुत धन्यवाद जो राम के लिए पत्र लिखने को कहा🙏
 
हे राम
 नमामि 🙏
 अपने अश्रुओं के जल से आपकी चरण धूलि धोने का आंनद लेने का सौभाग्य चाहती , जिस पावन धरा पर आपने जन्म लिया उसकी आपको एक बार भी वापस याद न आई राम , कृशकाय हुई धरा को  एक पल को नजर उठाकर देख ही लेते
कौशल्यानन्दन राम कहने से जी भर आता , ह्रदय भर भर कर स्नेह से रुलाई रोके न रुकती क्या करें हम स्त्रियाँ ऐसी ही है रचयिता ने भी बनाते समय  प्रेम की अधिकता ही भरी, उसी प्रेम की सौगन्ध हो राम ! सभी के कष्ट हरण हेतु जन्म लेने वाले हे प्रभु क्या अब आप कष्ट समय मे अधिक कठोर हो जाते या आपको हमसे कोई रुष्टता हो चली है , धरती पाप से भर रही मगर उतने ही पुण्य कर्म भी शेष होंगे कभी बिना किसी विवेचना के सिर्फ प्रेमवश ही हमारी ओर देख लो धीरश्रेष्ठ
हे मंद मंद मुसकुराने वाले ज्योतिर्मयी अब भी राम नाम से श्रेष्ठ कुछ भी नही , जहां राम है वहा निर्भय सँग निडरता है , प्रेम सँग स्नेह की लता  है , और जीवन सँग जीवटता है फिर  इस धरा को उदासी के घनघोर भवँर में छोड़ कहा रमण हुए राम
हे जानकीवल्लभ , केवट की नाव , शबरी के बेर , पत्थर की अहिल्या के जीवन का तारण हुआ मगर इस कलियुग में मनुष्य जीवन को कष्टों से भोगने वाला बनाकर यह भेद क्यो किया , मानवता को तार तार करने वाले भाव की अधिकता के पीछे कोई रहस्य है या मनुष्यता की परीक्षा
हे दशरथनंदन , अब और न परिक्षा लो प्रभु अब बस आ जाओ आ ही जाओ , नम आँखों से बरसती बूंदों को और अधिक शुष्क न करो प्रभु , राम का दिया यह जीवन राम वापस ले तो  यह कैसा बहाना
   आपकी बाट जोहती एक आस की किरण प्रवीणा जोशी के ह्रदय से पहुँचे🙏 
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  उषा किरण का पत्र - 
  
जै राम जी की🙏

पूजा कह रही हैं राम जी को चिट्ठी लिखो
हमने कहा नहीं मन हमारा
पूछ रही है क्यों भाई?
अब क्या बताएं क्यों?
सभी ने तो पुकार लिया
मनुहारें कीं, प्रार्थना कीं,
क्षमा माँग ली
बताओ अब हम क्या कहें ?
कैसे बताएं कि हम जन्म के घुन्ने हैं तो हैं.
अब ऐसा ही बनाया आपने.
मन में लगी है भुनुर- भुनुर, तो क्या लिखें?
गुस्से और आँसुओं से कन्ठ अवरुद्ध है.
मतलब हद्द ही कर रखी है.
न उम्र देख रहे न कुछ, बस उठाए ही जा रहे हो
जैसे ढेला मार कर टपके आम हैं हम सब
`जेहि विधि राखे राम तेहि विधि रहिए’
बचपन से गा रहे- अब ऐसे रखोगे ?
हा- हाकार है चहुँ ओर...
शोर है- `त्राहि माम ...त्राहि माम’
अरे यदि आबादी ज्यादा लग रही
धरती पर बोझ हल्का ही करना है तो
और तरीके हैं...कायदे से करो काम.
पहले वाला कोरोना बड़े- बूढ़ों को उठा रहा था
हमने कहा चलो ठीक है
पर अब ये नया वाला मुँहझौंसा नया वाला बच्चों,युवाओं को भी नहीं बख्श रहा राक्षस
...अब हम क्या बताएं?
और इतने बलशाली असुर मारे तुमने
ये तनिक सा नहीं संभलता तुमसे कोरोना हुँह.
अब बहुत डाँट लिया हमने तुम्हारी बड्डे पर
ऐसा तो हमने कभी नहीं किया पर मजबूर हैं
ध्यान से सुनो हमारी सलाह-
ये सपना हम रोज देखते सोने से पहले
बस वो ही पूरा कर दो-
सुना है एक वैक्सीन पर काम हो रहा
जो नाक में स्प्रे करते ही कोरोना उड़न छू
तो बस अब जल्दी ही उसी में टपका दो वो ही
जो हनुमान बाबा लाए थे न - संजीवनी
बस एक दिन सोकर उठें और अख़बार में बड़ा- बड़ा छपा दिखे-
आ गई, आगई नेजल स्प्रे वाली...
मिनटों में कोरोना उड़न -छू
लौट आए धरती की मुस्कान फिर
लौट आएं रुकती साँसें सबकी
थक गए न्यूज में भी कराह, लाशें, पीड़ा देख
कलेजा हर समय थरथराता है ..
डर लगता है अपनों के लिए
अब ये बात समझो और मानो
बाकी हम क्या समझाएं आपहि
तो इत्ते बड़े समझदार हो ...!
थोड़े लिखे को ज्यादा समझना
और जरा खबर लो अब सबकी.
सो कहाँ रहे हो ?
जाते हम अब.
सीता मैया, लखन भैया और
हनुमन्त लला को प्रणाम कह देना
आपकी- अब जो है सो है ही
         —उषा किरण🙏🙏🙏 
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संध्या शर्मा का पत्र -

हे राम !!!!
हम सबकी पुकार सुनो
सुनो श्रीराम
जब से इस धरती पर जन्म लिया है
सुनते आये हैं
राम जी की इच्छा बिन
एक पत्ता भी नहीं हिलता
जब सबकुछ आपकी मर्ज़ी है
तो ये कैसी मर्ज़ी प्रभु !!
माना बहुत गलतियां हुई हैं
हम पापी मूरख अज्ञानियों से
तुम्हारी इस धरा पर आकर
तुम्हारे दिए हर प्राकृतिक उपहार का
दोहन किया है हमने
विकास और तकनीक के मद में
अपनी मृत्यु को आमंत्रण
हमने स्वयं दिया है
पर तुम तो पालनहार हो
हटा लो हमें उस राह से
सदबुद्धि दो हमें
हे राम ! क्षमा करो हमारी भूल
बचा लो इस महाकाल से
🙏🙏 

ऐसे ही उलाहना का मन हो रहा हे मेरे राम
आज तुम्हारा जन्मदिन है
न चैन न शांति
मन हर पल आशंकित है
फिर कैसा उत्सव ?

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अंजू(तितली) का पत्र -   

प्रियतम🌷....
     कुशल हूँ ,कुशल ही चाहती हूँ,अपनी ही नही सबकी कुशलता चाहती हूँ
‌होंगे तुम औरों के राम भगवान,,मेरे तो बस प्रियतम,,सारे रिश्तों मे इससे सुन्दर रिश्ता ना दिखा मुझे आज तुम्हारे साथ,, आमोद का प्रमोद का, हास का परिहास का, रूठने का मनाने का, जप का तप का,,क्योकि मन प्रफुल्लित हुआ तो हास परिहास किया तुमरे सँग,मन मे रास आया तो आमोद प्रमोद किया तुमरे सँग,,रूठ गये तुम तो मना लिया मैने, नही आये जब मिलने स्वप्न मे तो जप कर लिया मैने, और रूष्ट हुए कभी तो तप कर शांत किया तुम्हें,,, और जब पड़ी निपट अकेली तो एक प्रेयसी की भांति तुम्हें अपनी गोद मे लिटा अपनी अल्क़ों से तुम्हारे मुखमंडल को आच्छादित किया,उसे अपनी ही नजर से बचाने के लिये ,प्रेमी ही अपनी प्रेमिका की हर इच्छा पूरी करता,भावावेश मे उसके लिये चाँद तारे तक ला सकता,वरना पति लोग तो ताजिंदगी आटे दाल का भाव ही लगवाते रह जाते..तो नही चाहिये मुझे कोई चाँद कोई तारा,भले ही रहूँ बनी तुम्हारी प्रेयसी
चाहिये तो बस एक अवतार  तुम्हारा उस त्रेतायुग वाला इस कलयुग मे, जो स्वयं इस कोरोना नामक रक्तबीज जैसे राक्षस का सफाया कर और कलयुग का अंत कर फिर से उसे सतयुग मे ले जाये पूरे विश्व को...

बोलो ना प्रियतम ....,आओगे ना,.... बोलो ना...

मैने चाँद तारे तो नही मांगे तुमसे
ना माँगी खुदा से उसकी खुदाई
बस माँगी तो सिर्फ एक
उस कोरोना से विश्व की रिहाई 

तुम्हारी आँखों मे आँखें डाल देख रही हूँ अब  इन अल्क़ों को हटा, जैसे कह रहे हों
कि रुको प्रियतमा.. मै चल चुका हूँ बस आ ही रहा हूँ 

आओ प्रियतम👍कहो तो फूल बिछवा दूँ राहों मे...

                               एक प्रियतमा तुम्हारी...

@सॉरी राम जी.. आज के लिए प्रियतम ही बना डाला तुम्हें,, थोड़ी देर के लिये सेल्फिश जो हो  रही हूँ इस आपदा से सबको उबरवाने के लिए
फिर याद दिला रही
ना तारे माँगे ना  चाँद माँगा
मैने तो बस एक  तुम्हारा अवतार माँगा
बताऊँ थोडी देर के लिये पहले वाले बाल्मीकि जो मरा मरा जप के इतना ज्ञान पा गये शायद उनकी आत्मा ने आकर  मुझमे ,मुझमे ये ऊपर उल्टा लिखवा दिया तो एक नमन बाल्मीकि के नाम..

उल्टा नाम जपते जग जाना
 बाल्मीकि में ब्रह्म समाना...
##प्रियतम मेरे अब मान भी जाओ
      कहना मेरे प्यार का....💐💐
अंजू(तितली)...
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अर्चना चावजी का पत्र - 

राम
कितना पुकारा,नहीं सुनते तुम,सोचा पत्र लिखूं,और रख दूं,शायद पढ़ो,और  सुनो कभी मेरी, कहना सिर्फ इतना है कि ठुमक ठुमक चल तुमने ममता लूट ली।शांत व धैर्य से युवा होने का ऋण चुकाया ,अपने सारे रिश्ते निभाने में एड़ी चोटी का जोर लगाया,मर्यादा पुरुषोत्तम हो गए। त्याग, करुणा,प्रेम,मोह क्रोध, तप,दया,सहनशीलता सब के पर्याय बन पत्थर लगाते चले ,अब हमसे क्या चाहिए ,खासकर मुझसे? कभी कुछ कहने का साहस नहीं किया जो दिया वो लिया ।अब मन भर आया एक मौका देना कहने का "हे राम"...बस...🙏

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गिरिजा कुलश्रेष्ठ का पत्र - 

मेरे आराध्यदेव,
मेरे ही क्यों , सम्पूर्ण भारतवर्ष के ...हर भारतवंशी के आराध्य हो तुम . हर साँस तुम्हारे नाम से ही स्पन्दित है . हर शरीर तुम्हारी चेतना से प्राणवान् है . तुम आस्था हो , विश्वास हो , टूटे बिखरे हृदय की आस हो . तुम्हारा चरित्र अद्वितीय है . हालाँकि कवियों ने तम्हारे चरित्र को बहुत तोड़ा है . कई मन गढ़न्त कथाएं जोड़कर धूमिल करने का प्रयास किया है फिर भी राम का नाम कण कण में समाया है .
प्रभु , कवियों ने तुम्हें प्रनतपाल ,दीनबन्धु ,आरतहर और न जाने क्या क्या कहकर अपनी परेशानियों का कारण निवारण भी तुमसे ही जोड़ लिया है .यह स्वार्थपरता है लेकिन जोड़ लिया है तो उसकी लाज भी तुम्हें ही रखनी होगी .देख रहे हो कि इस महामारी को लेकर लोग तुम्हारी दयालुता पर सन्देह कर रहे हैं .हालाँकि इस दुनिया को सुन्दर या असुन्दर उन्नत या अवनत , निरामय या रुग्ण बनाने वाला मानव है ,तुम नहीं . फिर उसके लिये तुम भला क्या कर सकते हो ? यही सोच रहे हो ना ..
बहुत कुछ कर सकते हो प्रभु . तुम आत्मबल दे सकते हो ताकि हर संकट का सामना हिम्मत के साथ कर सकें , सत्प्रेरणा दे सकते हो ताकि जीवन शुद्ध सरल बने , अच्छाई के प्रति विश्वास दे सकते हो ताकि सही मार्ग चुन सकें ..प्रत्युत्पन्न मति दे सकते हो ताकि समस्या का तुरन्त उचित समाधान खोज सके , हदय को प्रेम और सद्भाव से भर सकते हो . मानव को कृतज्ञ होना सिखा सकते हो ताकि वह प्रकृति के साथ मनमानी न कर सके . प्रभु , भाव विचार बदलने से आचरण बदलता है और आचरण बदलने से सब कुछ ठीक होजाएगा . इस संकटकाल में बहुत जरूरत है धैर्य और आत्मशक्ति की . इसलिये हे रघुनन्दन तुम हदय में विराजो ...न न जो बात बात में तुम्हारे नाम की दुहाई देते हैं वे आडम्बर करते हैं . तुम सच में जहाँ हो वहां अनर्थ हो ही नहीं सकता . तो प्रभु आ जाओ हर अन्तर में और भरदो उसे आत्मशक्ति और आस्था से ताकि दूर हो हर आदि व्याधि ..श्रान्ति क्लान्ति...
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पूजा अनिल का पत्र - 

  श्री राम जी को पूजा अनिल का राम राम सा! 

मुझे यह याद नहीं कि जीवन में जब सर्वप्रथम तुम्हारा नाम सुना होगा तो मैंने क्या प्रतिक्रिया दी होगी? यह भी याद नहीं कि तुम्हें भगवान क्यों माना होगा? इतना निश्चित तौर पर याद है कि जहाँ मेरा जन्म हुआ, वहाँ सब लोग एक दूसरे से अभिवादन स्वरूप ''राम राम'' कहते थे और अब तक यही कहते हैं।  

तुम मेरी आस्था के केंद्र में थे, यह भी कुछ समय पहले तब पता चला जब किसी ने संपर्क किया मुझसे और निवेदन कर कहा कि जिस भू भाग में मैं रहती हूँ, वहां के लोगों के मन में बसे हुए राम के प्रति आस्था को लिखना है। मैं हैरान हुई, मैं ही क्यों? क्या मैंने कभी राम के प्रति कुछ कहा है कि मुझे चुना गया इस काम के लिए? मेरे लिए वाकई हैरान कर देने वाली घटना थी वो।  मैंने न कभी किसी से तुम्हारे बारे में बात की थी और न ही  किसी सोशल नेटवर्क पर अपने आप को इतना प्रदर्शित किया कि कोई मुझे राम के प्रति लिखने को कहे!! (यह अलग बात है कि मुझसे गहरे जुड़े लोग जानते हैं मेरी आस्था और विश्वास!) 

मैंने उनका आग्रह सम्पूर्ण ह्रदय से स्वीकार किया, राम से यानि तुमसे जुड़े सत्य प्रमाणों की खोज की। वाल्मीकि रामायण में डूब कर खोजा, इसी भू भाग में वर्तमान में लिखा जा रहा साहित्य खोजा।  वह एक अद्भुत अनुभव था मेरा, जैसे राम स्वयं चाहते हो मेरे संपर्क में आना! मैं जितना पढ़ रही थी, उस से हज़ारों गुना अधिक अनुभव कर रही थी राम को! ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे श्री राम मेरे इर्द गिर्द हैं हर समय। जैसे राम तुम स्वयं चाहते थे कि किसी कोने में दबे छिपे राम को दुनिया के सामने प्रत्यक्ष उजागर कर दूँ!  

मैं नहीं जानती क्यों और कैसे, लेकिन जब मैं बहुत छोटी रही होउंगी, तब ही उस काल के  बचपन से मेरे भीतर एक अटूट विश्वास रहा है कि ''जो कुछ घटित होता है वो अच्छे के लिए ही होता है''। जबकि मुझे याद नहीं कि मेरे आस पास के लोग इस सिद्धांत को मानते रहे हों, तो मैं नहीं जानती कि मैंने कैसे अपनाया यह सिद्धांत!  मेरे अपने जीवनकाल में बहुत से दुःख और संकट आये मगर मेरा यह विश्वास कभी खंडित नहीं हुआ।  हर दुःख और विपरीत परिस्थिति के बीत जाने के पश्चात् मैंने देखा कि जीवन हर बार अधिक निखर कर सामने आया।  मैं चाहती हूँ कि दुनिया इस बात को समझे कि हर एक परिस्थिति, हर एक व्यक्ति यहाँ  इस दुनिया में अनित्य है, जो कुछ अभी, इस समय  दिख रहा है आँखों के आगे, वो सब अनित्य है, सब कुछ बदल जायेगा एक दिन, व्यक्ति भी परिस्थिति भी, इस जग में कुछ भी सदा के लिए रहने वाला नहीं है, तो किसी भी बात का अवसाद कन्धों पर लेकर ना जीयें। मूल रूप से यही कामना करती हूँ कि-   

सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुख भागभवेत।

ऊँ शांतिः शांतिः शांतिः

अर्थात  "सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।''  

राम, तुम्हारी कहानी में भी तो सब  कुछ कितना अनित्य रहा!  कैसे एक ही पल में वन गमन को प्रस्तुत हुए तुम? कैसे राजतिलक की घड़ी में अकस्मात् आई विपरीत परिस्थिति के सामने संतुलित रह कर राजगद्दी का त्याग कर पाए? पिता का आदेश उन से  जीवन भर का वियोग होगा, क्या तुम जानते थे यह? चौदह वर्ष तक वन में इतने संघर्ष  किये, सीता की जुदाई सही तथा कठिन युद्ध  के पश्चात जब सीता से मिलन हो पाया तब कैसे ह्रदय पर शिला रख कर सीता से अलग रहने का निर्णय किया होगा? 

मैंने पढ़ा है और सुना है कि तुम नारायण के अवतार हो। तुम्हारी तरह नारायण का ही अवतार हैं श्री कृष्ण। और धरती पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर श्री कृष्ण का धरती पर अवतरण लगभग 5000 वर्ष पूर्व का माना जाता है जो कि द्वापर युग कहा जाता है। कहा जाता है कि इसके पश्चात् कलयुग में नारायण का कल्कि अवतार आएगा धरती पर। एक बात बताओ, यदि इसके पहले के सब अवतारों में नारायण राक्षसों और दैत्यों से युद्ध करके धरती को सुरक्षित करने आये तो अब किस से युद्ध करने आएंगे? अब तो उस जमाने की तरह के दैत्य भी नहीं दिखाई देते!! हाँ, मनुष्य रूप में कई हिंसक नर मानव मिल जायेंगे जो कि पृथ्वी के कोने कोने में फैले हुए हैं। बताओ, कैसे निपटोगे इतने दानवों से? 

मैं कभी कभी सोचती हूँ कि तुमसे कहूँ कि संभवतः मैं तुम्हारे किसी काम आ सकूँ! इस धरती पर मेरे लायक कोई काम हो तो बताना मुझे। लेकिन फिर लगता है कि मैं तुम्हारे क्या काम आउंगी, मेरी क्या आवश्यकता तुम्हे? तुम तो स्वयं हर तरह से सक्षम हो। मगर आज मैं कहती हूँ तुमसे कि हे राम! जब भी तुम्हे आवश्यकता हो तब मुझे अवश्य याद करना, जगत कल्याण हेतु सदैव प्रस्तुत हूँ मैं।      

तुमको तो पता ही होगा कि एकाएक माँ भी मेरा साथ छोड़ गई अब से दस महीने पूर्व। कैंसर से लड़ाई नहीं लड़ पाईं वे, आखिर हार गईं। अब तुम्हारे ही धाम में होंगी वे, तुम मिले हो क्या उनसे? कहना उनसे कि बहुत बहुत बहुत याद करती है उनकी गुड़िया उनको। कहना कि कठिनाई भी बढ़ गई उनके चले जाने से, कोई राह भी सूझती नहीं, अब कोई राह दिखाने वाला भी नहीं है उनके बिना। कहना कि  उनका फ़ोन नहीं आता तो कितना अकेलापन अनुभव होता है मुझे यह बस मैं ही जानती हूँ। माँ से यह भी कहना कि उनसे गले लगने का मन करता है, उनके हाथ से बना कोरा फुलका खाने का मन करता है। कहना कि माँ थी तो बहुत हिम्मत थी मुझमें....। अब आँखें छलक आईं, इस से अधिक क्या कहूं!!! 

धरती पर बढ़ रहे दुःख से भी तुम बिलकुल अपरिचित नहीं होंगे! इतनी पीड़ा देख कर निःसंदेह तुम भी वहाँ पर बहुत दुखी होंगे! कोरोना नाम के इस अदृश्य वायरस ने यहाँ पर जो तबाही मचाई है, उसकी सुचना तुम तक अवश्य पहुंची होगी।  इस से निपटने का तुरंत कोई अचूक नुस्खा बताना हमें, कि इस अदृश्य दुश्मन से लड़ते लड़ते थक चुके हैं पृथ्वीवासी अब। 

मैं चाहती थी कि ''शेष कुशल'' लिख कर पत्र समाप्त करूँ, किन्तु इस समय यहाँ कुछ भी कुशल नहीं है। थोड़ा कहा, बहुत समझना।  
सदा प्रसन्न रहो तुम परिवार सहित।  
राम जी को मेरी यानि पूजानिल की प्रेम भरी  राम राम!  




Comments

यह एक धरोहर है, जो श्री राम तक पहुंचा दिए गए
Archana Chaoji said…
सुन ले अरज हमारी ओ पालनहारे
shobhana said…
तेरे राम मेरे राम हम सबके राम
हे कृपानिधान...
विश्व का कल्याण कीजिये
वा ह पूजा यह था सरप्राइज
malvika said…
राम जी को राम राम।
सभी की पाती पहुंचे ।।
sangita said…
अनमोल संकलन
Anju gupta said…
Vahh पूजा जी घन्यवाद
हमारे पत्रों को संकलित कर सही पते तक पहुँचा दिया
अब तो रामजी को एक एक पत्री खोलकर पढ़नी पड़ेगी
सबके भावों से भीगे पत्रों को पढ़कर खुद भी एक बारगी भीग ही जायेंगे वो और तुरन्त कुछ एक्शन भी ले डालेंगे अपने प्रिय भक्तो की खातिर👍🙏

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